पाप की सामग्री छोड़ना – पुण्य है ।
पुण्य की सामग्री छोड़ना – वैराग्य  ।

धर्म तो सत्य है ही, फिर धर्म के आगे ‘सत्य’ लगाने की क्या ज़रूरत है ?
क्योंकि आज असत्य को भी धर्म कहने लगे हैं ।

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी

मुनि श्री पावनसागर जी का आहार पिछले 11 दिनों से नहीं हुआ है ।
मुनि श्री अहमदाबाद में हैं, उनकी विधि (नियम) नहीं मिल रही है ।
आप से जिस रूप में बन सके मुनि श्री के प्रति शुभ भावनायें प्रबल करें ।

तेरहवें दिन महाराज श्री की क्रिया/विधि ( 3 दंपत्ति मुकुट बांधे, हाथ में तीन तीन कलश लिये हुये खड़े हों ) मिल गई और आहार निर्विघ्न संपन्न हुये ।

क्रोध करने का अर्थ है दूसरों की गलतियों की सज़ा खुद को देना ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी ( श्री कल्पेश भाई )

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