टाइम-टेबिल का प्रयोग हमारी जीवन की गाड़ी को नियमित करने के लिये होना चाहिये,
ना कि दूसरे की गाड़ियों के देर से चलने की सूचना लेने के लिये ।
चिंतन
किसी मेंढ़क को थोड़े से भी गर्म पानी में ड़ाला जाये, तो वह कूद कर बाहर आ जाता है ।
पर मेंढ़क जिस पानी के बर्तन में हो, उसे यदि धीरे धीरे गर्म करके उबालने की स्थिति तक ले जाया जाये, तो भी वह बाहर नहीं कूदता और वहीं मर जाता है ।
यदि अचानक कोई बड़ा पाप हो जाये तो वह हमें झटका देता है, इससे बचने की हम कोशिश भी करते हैं ।
पर थोड़े थोड़े पाप कर्मों को करते करते हम अभ्यस्त होकर खत्म हो जाते हैं पर उनसे छुटकारा पाने का प्रयत्न नहीं करते ।
(श्री गौरव)
कैलेन्ड़र का महत्त्व पुरूषार्थी और अनुशासित व्यक्तियों के लिये है ।
बाकि सब तो दिन, महीनों और पूरे जीवन को बिना देखे ही गंवाते रहते हैं ।
(श्री एस.के.जैन)
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता,
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर ठिकाने आएंगे |
(सुश्री रूचि)
चलने को चल रहे हैं, पर ये खबर नहीं –
कि हम सफ़र में हैं या मंज़िल सफ़र में है ।
स्व. प्रो. श्री जे. एस. शर्मा जी
A 2002 study of AIDS patients published in the ‘Annals of Behavioural Medicine’ found that the most religious patients had the lowest levels of the stress hormone cortisol,
And that frequency of prayer was significantly related to longer survival.
Mrs. Apurva
If the path is beautiful, first confirm where it leads…..
But, if the destination is beautiful, don’t bother how the path is…… Keep walking…………
(Shri R.B. Garg)
मनुष्य का आभूषण रूप है ।
रूप का आभूषण गुण है ।
गुण का आभूषण ज्ञान है ।
ज्ञान का आभूषण क्षमा है ।
दर्पण को जब गौण करोगे, तब अपना बिम्ब दिखेगा ।
बाह्य पदार्थों का महत्त्व जब कम करोगे, तब स्वानुभव होगा ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
दर्द हड़्ड़ी टूटने पर ज्यादा होता है या Dislocation में ?
शरीर का Damage किसमें ज्यादा होता है ?
दौनों में बराबर होता है ।
Dislocation – राग है, जो अपनी ओर खींचने से होता है ।
हड़्ड़ी टूटना – द्वेष है, जो धक्का मारने से टूटती है ।
चिंतन
कर बोले कर ही सुने, श्रवण सुने नहीं ताय ।
( एक हाथ जब दूसरे हाथ की नब्ज़ देखता है तब कान को भी आवाज़ नहीं आती है )
दान देते समय किसी को पता नहीं लगना चाहिये ।
श्री लालमणी भाई
नाव पानी पर चले तो ठीक,
पानी नाव में नहीं भरना चाहिये, वरना ड़ूब जायेगी ।
वैभव/संसार हमारे मन में न भर जाये, वरना हम भी ड़ूब जायेंगे ।
श्री चक्रेश भैया
34 साल पापी पेट के लिये काम किया,
अब पापी (विकारी) आत्मा के लिये कुछ कर लूं ।
चिंतन
वे अंधेरे भले थे कि, कदम राह पर थे,
ये रोशनी लाई है, मंज़िल से बहुत दूर हमें ।
(जानकारी की रोशनी में प्राय: हम गलियाँ ढ़ूंढ़ लेते हैं )
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