बीमार को देखकर/ सम्पर्क में आने पर बीमार होना पसंद नहीं करते हो।
तो क्रोधी आदि के सम्पर्क में आने पर क्रोध आदि क्यों ?

(सुरेश)

छूटने की कल्पना से ही भय होता है, वैभव/ शरीर/ प्रियजनों के छूटने का भय।
यदि इन सबको नश्वर मान लो और आत्मा को अनश्वर तो भय समाप्त।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

मन कोमल होता है तब ही तो आकार ले लेता है गर्म लोहे की तरह,
झुक जाता है तूफानों में।
घुल जाता है अपनों में या अपने में।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

चाह बुरी नहीं, यह तो नाव की गति के लिये आवश्यक जलप्रवाह है। पर वह प्रवाह बाढ़ नहीं बननी चाहिए वरना जीवन की नाव डूब/ भटक जाएगी।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

पथ्य* जो पथ में लिया जाता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

* रास्ते के लिए भोजन सामाग्री/ अगले जन्म को जाते समय पुण्य कर्म।

भगवान के अनंत गुणों में से उस गुण की चाह करें जो हमारी कमजोरी हो।
आज तक बस गुणगान करते रहे, इसलिए भगवान का कोई गुण हम में आ नहीं पाया।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

विश्वास तब जब बुद्धि के परे हो, फिर चाहे संसार हो या परमार्थ।
विश्वास किया जाता है, दिया नहीं जाता।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

शिक्षा Broad अर्थ में आती है, विद्या भी इसमें समाहित है।
विद्या Specific, जो हमारे जीवन को संवारने के काम आये। इसलिए विद्यार्थी कहा, शिक्षार्थी नहीं।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

धर्म संकटों को समाप्त नहीं करता, उन्हें सहने की शक्ति देता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

अपने पापों को स्वीकार कराता है/ पापों का एहसास कराता है। आगे पापों की पुनरावृत्ति रोकता है।

चिंतन

‘भाग्य से अधिक और समय से पहले कुछ नहीं मिलता’ – यह सिद्धांत शुरुआत के लिए खतरनाक है/ पुरुषार्थहीन बना देता है।
पुरुषार्थ पूरा करने के बाद, फल का इंतज़ार करते समय इस सिद्धांत को जरूर लगाना, तब यह आपको Tension से मुक्ति दिला देगा।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

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