We make living by what we get,
We make life by what we GIVE.

(Toshita)

आजकल पुरूषार्थ व्यायाम करने वाली साइकिल जैसा है ,
चलाते चलाते, पसीना पसीना हो जाते हैं पर पहुंचते कहीं नहीं ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

मज़बूरी से त्याग करने  में पुण्य कम मिलता है, त्याग तो मज़बूती से होना चाहिये ।

वृद्धावस्था में इच्छायें कम होने से पुण्य कम मिलेगा, युवावस्था में उन्हीं चीजों का त्याग करने से पुण्य ज्यादा ।

इस संसार को कैसे समझें कि यह मेरा नहीं है ?

जो आपका था ही नहीं, उसे सोच-सोच कर कि ये आपका है, अपना मानने लगे ।
तो जो वास्तव में आपका है ही नहीं, उसे यह सोच-सोच कर ही कि यह मेरा नहीं है, पराया Feel नहीं कर सकते हैं ?

चिंतन

अब्राहम लिंकन ( अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ) छोटे से छोटे व्यक्ति के अभिवादन का ज़बाब Hat उतारकर बड़ी विनम्रता से देते थे ।
उनके मित्रों ने कहा – राष्ट्रपति होकर आपको हर किसी के लिये झुकना नहीं चाहिए ।
लिंकन  – बड़े तो अपने गुणों से बनते हैं और विनय बहुत बड़ा तथा आवश्यक गुण है ।
यदि मैं राष्ट्रपति हूँ, बड़ा हूँ तब मुझमें विनय एक साधारण नागरिक से अधिक होनी चाहिए ।

दृष्टि यदि सही हो तो, संसार की कोई भी वस्तु खोने पर हम कुछ भी नहीं ‘खोते’,
बल्कि शांति, आनंद और सुकून ‘पाते’ हैं,
क्योंकि हमारा मोह/ Attachment, परिग्रह कम होता है, मन में उदारता आती है ।

चिन्तन-श्रीमति निधी

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