We make living by what we get,
We make life by what we GIVE.
(Toshita)
ज्याद कमाओ औरों को, कम कमाओ अपने को ।
श्री लालमणी भाई
(दान/परोपकार अधिक, अपने पर खर्च कम)
धर्म में जकड़न नहीं होनी चाहिये,
खुलापन/स्वेच्छा होनी चाहिये ।
आजकल पुरूषार्थ व्यायाम करने वाली साइकिल जैसा है ,
चलाते चलाते, पसीना पसीना हो जाते हैं पर पहुंचते कहीं नहीं ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
Worship is not a ”Spare wheel” that you pull out when in trouble, but it is a ”Steering wheel” that direct the right path throughout.
Er. Simple Ankita jain
कल्पना अस्थिरता देती है ।
बिना पैर का पक्षी है, उड़ता तो बहुत है पर उतरता कहीं नहीं है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
एक पेड़ से 1 लाख तीलियां बनती हैं,
पर एक माचिस की तीली 1 लाख पेड़ों को जला देती है ।
मज़बूरी से त्याग करने में पुण्य कम मिलता है, त्याग तो मज़बूती से होना चाहिये ।
वृद्धावस्था में इच्छायें कम होने से पुण्य कम मिलेगा, युवावस्था में उन्हीं चीजों का त्याग करने से पुण्य ज्यादा ।
इस संसार को कैसे समझें कि यह मेरा नहीं है ?
जो आपका था ही नहीं, उसे सोच-सोच कर कि ये आपका है, अपना मानने लगे ।
तो जो वास्तव में आपका है ही नहीं, उसे यह सोच-सोच कर ही कि यह मेरा नहीं है, पराया Feel नहीं कर सकते हैं ?
चिंतन
मौत के ड़र से नाहक परेशान हैं,
आप ज़िंदा कहाँ हैं , कि मर जायेंगे ?
आपे से बाहर होना,
अपने स्वभाव से बाहर होना ।
मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अधूरा पैदा होता है,
फिर सम्पूर्णता के लिये पुरूषार्थ करके पूर्णता पाता है ।
अब्राहम लिंकन ( अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ) छोटे से छोटे व्यक्ति के अभिवादन का ज़बाब Hat उतारकर बड़ी विनम्रता से देते थे ।
उनके मित्रों ने कहा – राष्ट्रपति होकर आपको हर किसी के लिये झुकना नहीं चाहिए ।
लिंकन – बड़े तो अपने गुणों से बनते हैं और विनय बहुत बड़ा तथा आवश्यक गुण है ।
यदि मैं राष्ट्रपति हूँ, बड़ा हूँ तब मुझमें विनय एक साधारण नागरिक से अधिक होनी चाहिए ।
दृष्टि यदि सही हो तो, संसार की कोई भी वस्तु खोने पर हम कुछ भी नहीं ‘खोते’,
बल्कि शांति, आनंद और सुकून ‘पाते’ हैं,
क्योंकि हमारा मोह/ Attachment, परिग्रह कम होता है, मन में उदारता आती है ।
चिन्तन-श्रीमति निधी
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