- सत्य धर्म की सजावट संयम से ही है ।
शराबखाने में बैठकर दूध पीने वाला भी बदनाम होता है ।
- एक मकान में आग लग गई । पत्नी ने पड़ोसियों की सहायता से सारा माल बाहर निकाल लिया । बाद में ध्यान आया कि पति तो अंदर ही रह गया ।
हम भी कषाय की आग से अपने शरीर रूपी माल को तो बचाने की कोशिश कर रहे हैं पर आत्मा रूपी मालिक अंदर जल रहा है ।
- बीमारियां हमें संयम की ओर जाने की प्रेरणा देती हैं ।
- संयम Government Stamp है, जो सादा कागज को नोट बनाकर मूल्यवान बना देता है ।
- संयम रखने के तरीके –
1. वस्तुओं को देखने से इच्छा जाग्रत होती है और उससे विषय कषाय पूरे शरीर में फैलती है ।
इच्छा की पूर्ति ,और-और असंयम पैदा करती है ।
2. ध्यान रहे – मौत का भरोसा नहीं ।
ड़ाक्टर के Declare करने पर कि अमुक वस्तु नहीं छोड़ी तो मर जाओगे, हम उन वस्तुओं को छूते भी नहीं हैं । यही मौत की कल्पना यदि हर समय हमारे दिमाग में रहे तो हम असंयमित जीवन जियेंगे क्या ?
3. कदम-कदम पर पाप हैं ।
महावीर भगवान ने कहा है – हर क्षेत्र में सावधानी बरतें ।
चलें तो चार हाथ आगे जमीन देखकर,
बैठें तो किसी को Objection ना हो, मुद्रा सही हो,
सोयें तो घोड़े बेचकर नहीं, सीधा सोने से संकल्प-विकल्प ज्यादा आते हैं, उल्टा सोने से विषय-भोग के सपने, धनुषाकार जाग्रत अवस्था में सोयें ।
खाना –
क्या ? – शुद्ध खायें ।
कब ? – जब भूख लगे तब, दिन में खायें ।
कितना ? – भूख से कम ।
पर हर समय जानवरों की तरह नहीं । दबा दबा कर नहीं वरना दवाखाना जाना होगा ।
क्यों ? – जीने के लिये, खाने के लिये नहीं ।
कैसे ? – गृहस्थ लोग बैठकर, भगवान का नाम लेकर, शांति से ।
मुनि खड़े होकर, क्योंकि जब तक खड़े होने की शक्ति है सिर्फ तभी तक उन्हें आहार लेना है ।
कैसे बोलें ? – हितमित प्रिय वचन बोलें ।
कौये के बोलने पर पत्थर पड़ते हैं,
कोयल छिप छिपकर बोलती है, फिर भी लोग उसे देखना चाहते हैं । - संयम Balance है ।
दो पहिये की साइकिल जो खड़ी भी नहीं हो पाती है, Balancing से चलती भी है और मंज़िल तक पहुंचती भी है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
- चारों कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) के समाप्त करने पर ही प्रकट होता है,
अन्यथा लाग-लपेट आ ही जाती है ।
- आज का धर्म अनाथों का नाथ है, सत्य Ultimate होता है ।
- सत्य को समझने के लिये गहराई में जाना होता है, ऊपर तो मगरमच्छ रहते हैं, मोती तो नीचे ही मिलते हैं ।
- एक ज़ज सा. के सामने बहुत पुराना Case आया ।
जल्दी निपटाने के लिये उन्होंने गुनहगार से कहा – मेरे प्रश्नों के हां या ना में ज़बाब देना ।
गुनहगार – पहले आप मेरे एक प्रश्न का ज़बाब दें – क्या अब आपने अपनी पत्नि को पीटना बंद कर दिया है ?
सत्य शब्दों की कैद में दम तोड़ देता है ।
सत्य तो अभिप्राय और अनुभूति का विषय है ।
- असत्य सफल होने के लिये सत्य की पोशाक पहन कर आता है ।
- सत्य 10 प्रकार का है ।
1. अक्षरात्मक
2.गणितात्मक – जैसे 2+2 हमेशा ही 4 होंगे ।
ये दोनौं सत्य जानवरों को नहीं मालूम होते ।
3. भौगोलिक – जैसे दुनिया गोल है ।
4. घटनात्मक – जैसे महावीर भगवान ने 2600 साल पहले मोक्ष प्राप्त किया था ।
5. ऐतिहासिक
6. जातीय – जैन जाति में पैदा हुये तो उनकी परंपरा को निभाना सत्य है ।
7. व्यवहारिक – संसार चलाने के लिये ज़रूरत होती है, झूठ होते हुये भी समाज की स्वीकृति मिली हुई है ।
8. ज्योतिष्क – इसका आगम में वर्णन है । जिसको जितना ज्ञान, उतने प्रतिशत सत्य भविष्यवाणी ।
9. सैद्धांतिक – जैसे मोक्ष परिग्रह के पूर्ण त्याग से ही होता है ।
10. आध्यात्मिक – यह गूंगे की मिठास की अनुभुति जैसा है ।
- एक महिला कब्र को हवा कर रही थी । लोगों ने समझा बहुत पतिव्रता है ।
पूछने पर पता लगा कि वसीयत में लिखा है कि जब तक कब्र सूख नहीं जाती उसे वसीयत का पैसा नहीं मिलेगा ।
आंखो से देखा हुआ भी जरूरी नहीं सत्य ही हो ।
- सत्य ब्रम्हचारी होता है, इसके संतान नहीं होती, अकेला होता है ।
झूठ वैसाखी के सहारे चलता है, सत्य अपने पैरों पर ।
- एक मुलज़िम ज़ज के सामने पेश किया गया ।
ज़ज ने पूछा – तुमने हिंसा, चोरी, कुशील क्या किया ?
मुलज़िम ने कहा – कुछ नहीं ।
फिर पुलिस क्यों पकड़ के लाई है ?
ज़बाब – मुझ में एक ही गंदी आदत है, झूठ बोलने की ।
एक झूठ में सारी बुराईयां निहित हो जाती हैं ।
- एक बहेलिया ने ज़िंदा चिड़िया का बच्चा हाथ में लेकर गुरू से पूछा –
चिड़िया ज़िंदा है या मरी हुई ?
गुरू – मरी हुई । - बहेलिया ने गुरू को गलत सिद्ध करने के लिये हाथ खोला और बच्चे की जान बच गई ।
किसी के उपकार में बोला गया झूठ भी सत्य होता है ।
- तीन प्रकार के लोग होते हैं ।
1. सच से लेना देना नहीं – सामान्य आदमी, सुनते पढ़ते तो हैं पर आचरण में नहीं लाते ।
2. सत्य से लेना नहीं, पर देना – कुछ पंड़ित/प्रवचनकार ।
3. सत्य से लेना भी और देना भी – साधू ।
- 5 दुर्गुणों की वजह से झूठ बोला जाता है –
1. क्रोध में
2. लोभ में
3. ड़र से
4. हास्य में
5. ज्यादा बोलने से ।
- सत्य कड़वा नहीं होता,
जैसे बुखार आने पर खाना अस्वाद लगता है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
- पवित्रता का नाम शौच है ।
- एक संत सबको आशीर्वाद देते थे – ‘मनुष्य भव:’।
पूंछने पर बताया – आकृति तो तुम लोगों की मनुष्य की है पर प्रकृति जानवरों की ।
अपने समकक्ष को देखकर कुत्ते की तरह भौंकते हो,
किसी के थोड़ा भी व्यवहार गलत करने पर गधे की तरह लात मारते हो,
सांप की तरह धन पर कुंड़ली मारे रहते हो,
बकरी की तरह हर समय मुंह चलता रहता है और ‘मैं मैं’ करते रहते हो,
चींटी और मधुमक्खी की तरह संकलन करते रहते हो, चाहे दूसरे उसको चुराते रहें ।
जानवर कभी भगवान नहीं बनते, उन्हें पहले मनुष्य बनना होता है ।
- बंजर भूमि की पहले सफाई करनी होगी, अंहकार के पत्थर, माया की दीमक, क्रोध के अंगारे और लोभ की गंदगी हटानी होगी, तभी धर्म की फसल लगेगी ।
- क्रोध दिमाग में रहता है, मान गर्दन में, माया हॄदय में तथा लोभ पेट में जो कभी भरता नहीं है ।
- इच्छा आसमान जैसी है, दूर से धरती से मिलती हुई दिखाई देती है पर पास जाने पर और दूर हो जाती है ।
- जितनी भूख उतनी ही खुराक होनी चाहिये थी,
पर हमारी जितनी खुराक बढ़ती जाती है, हम अपनी भूख उतनी ही बढ़ाते जाते हैं ।
हम खाना नहीं खा पाते हैं, वैभव के बदले सम्मान खाते रहते हैं ।
जिस वजह से वैभव आ रहा है, उस पुण्य को बढ़ायें । उससे वैभव की रक्षा होगी, अचानक चले जाने पर शोक नहीं होगा तथा जल्दी ही आवश्यकतानुसार वापस भी आ जायेगा ।
- कंजूस आदमी को कब्ज जैसा होता है,
पेट में मैला है पर निकलता नहीं है, उसे बेचैनी रहती है और दु:ख की बदबू भी आती रहती है ।
इनकी तीन Categories होती हैं –
1 – मक्खीचूस – ना खाता है, ना खिलाता है ।
बच्चों के सिर पर हाथ इसलिये फेरता है ताकि वो तेल अपने बालों पर लगा सके ।
2 – कंजूस – खुद खाता है पर दूसरों को नहीं खिलाता है ।
हंसता नहीं है वरना व्यवहार करना पड़ेगा ।
3 – उदार – खाता भी है, खिलाता भी है ।
- क्रोध बहुत कम समय के लिये आता है,
मान जब तक माला नहीं पहनाई जाये तबतक रहता है,
माया जब तक उल्लू सीधा ना हो जाये तब तक,
पर लोभ जीवन पर्यंत रहता है ।
- हम’And‘ के चक्कर में ना रहें, ‘End‘ की सोचें ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
- कपट नहीं करना या मन की सरलता को आर्जव कहते हैं ।
- बच्चा चाहे आदमी का हो या जानवर का अपनी निष्कपटता के कारण सबको प्रिय होता है ।
- कल का धर्म अस्तित्व को, अपने ‘मैं’ को मिटाने का था,
आर्जव धर्म मन, वचन, काय को एक करने का है ।
- जीवन में मिठास तो जरूरी है, पर गन्ने वाला- स्वभाविक
टेड़ा मेड़ा जलेबी जैसा नहीं – वैभाविक
- बगुले से तो कौआ अच्छा है – अंदर बाहर एक सा ।
- संसार में ढ़ोंग का जीवन भले ही चल जाये, पर ढ़ंग का जीवन जीना है तो आर्जव धर्म लाना होगा ।
- कपट की गहराई सबसे ज्यादा होती है, क्रोध तो Surface पर दिखता है, मानी को थोड़ा सा मान देते ही ठीक हो जाता है और लोभी थोड़ा पाकर ।
- सांप के पैर नहीं दिखते पर बहुत तेज और जहरीला होता है ।
कपटी की भी चाल नहीं दिखती ।
- हम घर, बाहर, मंदिर में, छोटे और बड़ों के साथ अलग-अलग मुखौटे तो नहीं लगा रहे ?
हमारे व्यवहार अलग-अलग जगह और अलग-अलग व्यक्तियों से भिन्न तो नहीं ?
- कपटी अगले जन्म में तिर्यंच (जानवर) बनता है और उसके जीवन में संताप और Tension रहता है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
- मान का ना होना मार्दव धर्म है ।
- क्षमा पहला धर्म, एक Message छोड़ गया – ‘क्ष’ से क्षय करें, ‘मा’ से मान को ।
- Ego – ‘E’ से ईश्वर, Go से चला जाना ।
- क्रोध तो थोड़ी देर को आता है, पर अहंकार बहुत समय तक टिका रहता है ।
क्रोध प्राय: व्यक्ति से होता है, मान समस्त/समुदाय के साथ होता है ।
- कोई रूठ जाये तो उसे मनाते हैं – ‘मान जाना’
आकर बताते हैं – ‘मान जायेगा’
उसके मान जाने के बाद कहते हैं – ‘मान गया’ ।
- मानी अगले जन्म में हाथी बनता है,
उसकी सूंड़ बहुत लंबी पर जमीन पर घिसटती रहती है, वह सब काम नाक से ही करता है ।
- मान का हनन प्रेम से होता है ।
- मान ‘मूंछ’ और ‘पूंछ के चक्कर में ही होता है ।
पति मूंछ के चक्कर में तथा पत्नि पूंछ (उसकी घर में पूछ ना होना ) के चक्कर में मान करते हैं ।
- हमको अस्तित्व बनाये रखना है विनम्रता से,
अस्तित्व खत्म करना है मान को समाप्त करके ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
उत्तम क्षमा :-
- क्रोध की परिस्थितियां मिलने पर भी गुस्सा ना करना ।
- हजार चिनगारियों के पास एक व्यक्ति भी नहीं आता,
शहद की एक बूंद पर हजारों चीटियां आकर्षित होती हैं ।
- ‘Welcome(वैलकम)’ की उपेक्षा करने वाला बैल है ।
- क्रोध शरीर में खून की तरह रहता है, बात की सूई चुभते ही बहने लगता है ।
- क्रोध के Action पर Control ना हो तो चलेगा, पर क्रोध का Reaction तो मत करो ।
- क्रोध से ज्यादा क्रोध की गाँठ बुरी है ।
- कभी संवाद मत बंद करना ।
पति पत्नि में संवाद बंद हो गया था,
पति ने स्लिप लिखकर पत्नि को दी – सुबह 4 बजे जाना है, उठा देना ।
किसी ने उठाया नहीं ट्रेन निकल गई, तकिये की साइड़ में स्लिप रखी थी – उठो 3 बज गये हैं ।
- गालीयों का Stock Limited होता है, वह 48 मिनिट से ज्यादा नहीं चल पाता ।
उस मुहुर्त को टाल दें, 5 गहरी सांस लें या 5 कदम पीछे चलने के बाद React करें तो क्रोध शांत हो ही जायेगा ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
Man asked Guru – I want peace.
Guru Said – Remove that ‘I’ as that is Ego,
remove that ‘Want’ as it is desire,
and ‘Peace’ will be yours.
(Mr.Pranjal)
जो वस्तु देखी ही नहीं या यदा-कदा देखोगे,
तो वैसे बनोगे कैसे ?
क्षु. श्री गणेश वर्णी जी
जो दूसरों को ज़बाब नहीं देता,
वह लाज़बाब है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Make your anger so expensive that no one can afford it….
And make your happiness so cheap that people get it free from you.
जब छोटे बड़े हो जायें,
तब बड़ों को छोटा बन जाना चाहिये ।
चिंतन
इंसान को बोलना सीखने में 2 साल लग जाते हैं,
लेकिन क्या बोलना है, ये सीखने में पूरी ज़िंदगी लग जाती है ।
(श्री धर्मेंद्र)
कोशिश करना कि ज़िंदगी में वो शख़्स आपको हमेशा मुस्कुराता हुआ मिले जो………..
आपको आईने में दिखता है…………..
(श्री संजय)
किसी कि मदद करते वक़्त उसके चेहरे की तरफ मत देखो…
क्योंकि उसकी झुकी हुई आंखें तुम्हारे दिल में गुरुर पैदा ना कर दें ।
(सुश्री रूचि)
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