आचार्य श्री एक बार किसी गरीब के घर आहार के लिये गये, रोटियों के बर्तन में 6 रोटियाँ थीं, उन्होंने 2 रोटी खाने के बाद अंजुली छोड़ दी । ताकि चौके वाले पति-पत्नि को उनके हिस्से की 2-2 रोटियाँ मिल सकें ।

दुश्मन ताकतवर हो तो हमला दोनों ओर से करें – बाहर से क्रियायें, अंदर से भी चिंतन आदि,
जैसे राजधानी (मन) में जासूस भेजे जाते हैं,

बाह्य और अंतरंग (जासूसों) में Communication Establish होना चाहिये वरना दुश्मन (अनादि संस्कार/कर्म) हारेगा नहीं,

राजधानी को जीतने के लिये, बाह्य छुटपुट किले जीतने से काम नहीं चलेगा ।

चिंतन

मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है ।
क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना रखता है, इसलिये ड़ूब जाता है |

मुनि श्री मंगलानंद जी

वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं ।
क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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April 8, 2022

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