एक दिन एक चूहा Dustbin में पूरा ना घुसकर वापस आ गया, क्योंकि उसकी Surface चिकनी थी ।
लेकिन हम संसार के चक्रव्युह में बाहर निकलने की चिंता किये बिना, घुसते ही जाते हैं ।

चिंतन

ज्ञायक बन गायक नहीं, पाना है विश्राम;
लायक बन नायक नहीं, जाना है शिवधाम।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

आगे बढ़ने से पहले, जो पहले नियम लिये हैं, उन्हें देख लो, विचार कर लो ।
पड़ौसी की दूसरी दुकान देखकर, अपनी दूसरी दुकान मत खोलो ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी (द्वारा- मुनि श्री आर्जवसागर जी)

हम सब चारों गतियां हर समय बांधते रहते हैं ,वे कर्म हमारी आत्मा से चिपकते रहते हैं ।
जब भी विपरीत परिस्थितियां उपलब्ध हों तब करना बस यह है कि –
1. पहले देवताओं जैसा व्यवहार करें, जैसे – भाई साहब ! ऐसे मत बोलिये ।
2. भाई साहब ना मानें तो थोड़ा धमकायें, मनुष्य की तरह
3. फिर भी ना मानें तो धमकी बढ़ाकर सींग मारने की स्थिति बना दें – पशुत्व ।
4. अंत में नारकियों जैसा व्यवहार कर सकते हैं, ताकि अगली बार सामने वाले की आपको छेड़ने की हिम्मत ना पड़े ।
इस क्रम को Adopt करने से धीरे-धीरे आपके व्यवहार में से नारकीत्व/पशुता कम होती जायेगी और देवत्व/मनुष्यता बढ्ती जायेगी, क्योंकि अधिकतर Cases देवत्व और मनुषत्व में ही निपट जायेंगे ।

क्या सोचा ?

चिंतन

श्वांस की क्षमता देखें – फेफड़ों में वायु भरने पर यदि कार भी ऊपर से निकल जाये तो कुछ नुकसान नहीं होता ।
हवाईजहाज के टायर हवा धारण करने से कितना बोझ उठा लेते हैं !

फिर विश्वास की क्षमता कितनी होगी ?

आचार्य श्री विद्यासागर जी

संसारी जीव संसार के चक्कर को चक्कर ना मान कर शक्कर मान रहा है ।
मीठे का आदी हो जाने के कारण यथार्थ को भी नहीं मानता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

गुरू श्री के पास एक सज्जन आए और पैर छूने लगे ।
गुरू श्री – यदि तुम लड़के हो तो पैर छूलो, यदि लड़की हो तो मत छूना ।
(क्योंकि उनके पहनावे से यह पता नहीं लग रहा था कि वह लड़के थे कि लड़की )

श्री विमल चौधरी

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