दो लोगों ने बराबर की Tax की चोरी की, एक के घर Raid पड़ गयी, पेपर्स पकड़े गये , सज़ा मिल गयी । दुसरे ने Raid से पहले पेपर्स जला दिये, सज़ा नहीं मिली ।
दुसरे के पास 3 Choice हैं –
1. आगे भी चोरी करता रहे :- कभी ना कभी पकड़ा जायेगा – बड़ी सज़ा मिलेगी ।
2. चोरी करना बंद करे :- पकड़ा नहीं जायेगा, सज़ा नहीं मिलेगी । पर कर्म बंध तो होगा, किसी न किसी रूप में आगे भुगतना भी पड़ेगा ।
3. चोरी बंद कर दे, प्रायश्चित करें, पैसे को दान पुण्य में लगायें – हो सकता है उसकी सज़ा माफ़ हो जाये ।
चोर तो हम सब हैं, कोई छोटा चोर कोई बड़ा चोर । पर पहले, दूसरी Category के चोर रहें, फिर तीसरी के, तभी कल्याण होगा ।
चिंतन
क्रोध Control करने के गुर :-
- Postponeकरें ।
- गहरी सांस लें ।
- शीशा देखें – आप उस समय कैसे लगते हैं ।
- ठंडा पानी पीयें ( आग पानी से ही बुझती है ) जिससे Adrenaline हारमोन्स Dilute होते हैं ।
- कारण ढ़ूढ़ें – क्यों सामने वाले ने ऐसा व्यवहार किया ?
- संकल्प लें – क्रोध नहीं करेगें ।
- अपेक्षायें ना रखें ।
- रचनात्मक कार्यों में लगें ।
अपनी गुस्सा लेकर कहीं और ना जाया जाये,
घर की बिखरी हुई चीजों को सजाया जायें ।
- कल्पना करें जिस पर गुस्सा कर रहे हैं, उसकी जगह मेरा सबसे प्रिय व्यक्ति होता तो !
- क्षमा भाव रखें, भगवान से प्रार्थना करें कि आपका क्रोध शांत रहे ।
श्री दुग्गल जी दिल्ली में बैंक के वरिष्ठ अधिकारी थे।
उनको कैंसर हो गया और बम्बई इलाज के लिये आते थे।
अस्पताल वालों ने विदेश से कोई ज़रूरी इंजेक्शन मंगाया और उसके लिये दुग्गल जी को दिल्ली से बुलवाया। जब वे मुम्बई पहुंचे तो वह इंजेक्शन बहुत ढ़ूँढ़ने पर भी न मिला। कई दिन इंतज़ार करते रहे और तबियत खराब होती गई तब उन्होंने डॉ पी एन जैन को फोन किया । इस पर डॉ जैन दुर्व्यवस्था से बहुत दुःखी हुये। तब दुग्गल जी ने कहा – दुःखी न हों, ये शेर सुनें –
“ख़ुदा की हुकूमत में, हरसू अमल है,
तफ़्कीर में जान अपनी क्यों खोता।
हुआ जो है अकबर, समझ तू ज़रूरी,
ग़र ज़रूरी न होता, तो हरगिज़ न होता।”
(तफ़्कीर = फिक्र )
शेर सुनाने के अगले दिन श्री दुग्गल जी का निधन हो गया ।
क्या ऐसी मुसीवतों में हम समता भाव रखते हैं ?
If you are going through hell, keep going.
Mr.Winston Churchill
(यदि रुक गए/ अटक गये तो नरक की यातना लगातार झेलनी पड़ेगी)
सिंगापुर में एक मित्र हमेशा एक नं. छोटा जूता पहनते थे ।
पूछने पर ज़बाब दिया – जब Office से घर आकर जूता उतारता हूँ, तो बहुत सुख और सुकून मिलता है ।
श्री तन्मय
संसारी सुख भी ऐसा ही है – थोड़े से सुख के लिये पूरी ज़िंदगी हम परेशानियां झेलते रहते हैं ।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पांव ?
बलिहारी गुरू आपकी, गोविन्द दियो बताय ।
आचार्य श्री – सच्चे गुरू गोविंद बताते नहीं है, आपको गोविंद बनने की कला सिखाते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
ये Factory कितनी अद्भुत है कि एक तरफ़ से बुढ़्ढ़े, बुढ़ियों को ड़ाला जाता है और दूसरी तरफ़ से गुड़्ड़े, गुड़ियां निकल कर सामने आते हैं ।
फिर मृत्युभय कैसा ?
हमें तो मृत्यु का स्वागत करना चाहिये ।
कर्म बांधना चाहते हो या काटना ?
पर Action तो सारे बांधने के हैं !
सर्दी लगी – ऊनी कपड़े पहन लिये,
गर्मी लगी – कूलर चला लिया,
गाली सुनी तो, 2 दे दीं,
भूख/प्यास लगी तो खाना खा लिया, पानी पी लिया ।
तो कर्म कटेंगे कैसे ?
थोड़ा संयम/ सहनशक्ति तो पैदा करो ।
When you reach for stars, you may not quite get them, but you won’t come up with a handful of mud either.
10 बाह्य – क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद, यान, कुप्य (वस्त्र), भांड़ (बर्तन), शय्यासन ।
14 अंतरंग – मिथ्यात्व, 4 कषाय, 9 अकषाय ।
अभक्ष्य – 5 प्रकार के हैं ।
1. त्रसघात – द्विदल, अमर्यादित भोजन
2. बहुघात – जैसे आलू आदि
3. अनिष्ट – सेहत के लिये नुकसानदायक
4. अनुपसेव्य – मूत्र आदि
5. प्रमादकारक – अफीम आदि
आचार्य श्री एक बार किसी गरीब के घर आहार के लिये गये, रोटियों के बर्तन में 6 रोटियाँ थीं, उन्होंने 2 रोटी खाने के बाद अंजुली छोड़ दी । ताकि चौके वाले पति-पत्नि को उनके हिस्से की 2-2 रोटियाँ मिल सकें ।
Appetite comes with eating.
स्नेह के संसर्ग (तेल) के कारण ही तिल को घानी में पिलना पड़ता है ।
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