दुश्मन ताकतवर हो तो हमला दोनों ओर से करें – बाहर से क्रियायें, अंदर से भी चिंतन आदि,
जैसे राजधानी (मन) में जासूस भेजे जाते हैं,
बाह्य और अंतरंग (जासूसों) में Communication Establish होना चाहिये वरना दुश्मन (अनादि संस्कार/कर्म) हारेगा नहीं,
राजधानी को जीतने के लिये, बाह्य छुटपुट किले जीतने से काम नहीं चलेगा ।
चिंतन
महावीर भगवान की जयन्ती पर
अहिंसा
अपरिग्रह
अनेकांत
आत्मस्वतन्त्रता
आपके जीवन में जयवंत हो ।
दान त्याग से पहले की स्थिति है ।
दान आंशिक है तथा त्याग पूर्ण है ।
नहीं छोड़ोगे तो छूट जायेगा ।
चेतन का भान होने पर, जड़ का महत्व कम हो जाता है ।
दया भाव है,
अनुकंपा उपाय है ।
मोह को छोड़ो, मोक्ष मिलेगा ।
करना क्या है ?
‘ह’ की जगह ‘क्ष’ लगाना है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Forgive is good, Forget is better, to move Forward is best.
Mr. Deepak Jain – USA
When you reach for stars, you may not quite get them, but you won’t come up with a handful of mud either.
कोई तुम्हें बातों के बीज दे,
तुम उनके फूलों के पौधे बनाकर ( अपनी क्रिया से ) अपने जीवन को सजा लेना ।
मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है ।
क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना रखता है, इसलिये ड़ूब जाता है |
मुनि श्री मंगलानंद जी
वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं ।
क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बारहवीं कक्षा में जब मेरा Dissection करने का नम्बर आता था, तो मैं Side वाले का देख कर काम चला लेता था ।
पर Exam में ड़र था कि मेंढ़क काटना ही पड़ेगा, सो भगवान से प्रार्थना करता रहता था कि मुझे Exam में मेंढ़क ना काटना पड़े।
सारे Colleges के Exams एक साथ होने से मेंढ़क कम पड़ गये और Examiner ने Offer दिया –
जो Dissection नहीं करना चाहें वे सिर्फ Viva दे सकते हैं, मैंने Viva ले लिया और मैं Dissection करने से बच गया ।
Dr. S.M. Jain
जो जानता है कि देने से, ज्यादा मिलता है, वही समझदार स्वार्थी है ।
हर Action का Reaction होता है ।
सिर्फ सिद्ध भगवान का Action ही होता है, वो भी ऊपर जाने का । जैसे फुटबाल में से हवा ( कर्म ) निकलने पर Reaction बंद हो जाता है ।
गुब्बारा मिलने या फूटने पर बच्चे आनंदित/रोने लगते हैं, बड़े होने पर नहीं ।
सारे Reaction कर्मों के बंधन से ही होते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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