यदि आपको कोई अच्छा लग रहा है तो मानकर चलिये कि वह अच्छा हो भी सकता है अथवा ना भी हो, पर आप अच्छे अवश्य हैं।
इस जीवन में किसी ने लगातार पाप किये पर मरते समय/ अगले जीवन के निर्णय का समय आने पर भाव बहुत अच्छे हो गये/पश्चातापादि कर लिया। तो अगले जीवन में मनुष्य तो बनेगा पर जीवन भर दु:खी रहेगा।
इसका विपरीत… जीवन भर अच्छे काम, अंत में भाव खराब… जानवर बनेगा पर ठाट से सेवा होगी।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
(यदि पाप इतने ज्यादा किये कि नरक जाना पड़ा तो बड़े-बड़े पुण्य भी छोटे से छोटा फल भी नहीं दे पायेंगे)
सिगरेट पीते समय भगवान का नाम लेने से, सिगरेट छूटने की संभावना रहेगी।
भगवान का नाम लेते समय सिगरेट पीने से भगवान के नाम छूटने की संभावना होगी।
मुनि श्री अरुणसागर जी
बोलना तो सभी को आता है।
किसी की ज़ुबान बोलती है, किसी की नियति;
पर जब इन लोगों का “समय” बोलता है तब इनकी बोलती बंद हो जाती है।
बौद्ध दर्शन…न अति काम, न अति कष्ट।
जैन दर्शन… न काम, न कष्ट।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पहले कर्ज़ से डरते थे, मरण से नहीं;
आज मरण से डरते हैं, कर्ज़ से नहीं।
मूल “स्वत:” का, ब्याज “पर” का होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पुत्र के वैराग्य भावों से डरकर पिता ने उसे सुरा-सुंदरियों से घिरवा दिया। बेटे ने सन्यास न लेकर संसार ही चुना।
1. उसके जीवन का अंजाम क्या हुआ होगा !
2. क्या हमने अपने जीवन को ऐसे ही नहीं घेर रखा है !!
3. क्या हमको अपने बारे में सोचने का समय है !!
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
“अब” के पास आने के लिये “तब” और “कब” का सम्बन्ध तोड़ना होगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
“निजप्रकाश” क्या किसी प्रकाशन में कभी दिखा ?
पर ढूंढते हैं – मंदिर, माला, ग्रंथों में।
जहाँ देखन हारा है/ जानन हारा है, वहाँ नहीं ढूंढते !
मुनि श्री समयसागर जी
प्रशासक को ताड़ना देनी पड़ती है पर उतनी, जितनी किसान अपने बैल को देता है।
शाम होने पर बैल अपने आप किसान के घर आ जाते हैं।
ताड़ना से प्यार/ Care ज्यादा।
मुनि श्री सुधासागर जी
इस भव की/ Short Term चिंता करने वाला पैसे के पीछे भागता है,
भविष्य के भवों/ Long Term की चिंता करने वाला पैसे से दूर भागता है।
मुनि श्री दुर्लभसागर जी
दाहसंस्कार के समय सिर को फोड़ा जाता है ताकि अंदर से भी पूरी तरह राख बन जाय, अधूरी रह गयी तो कितनी वीभत्स दिखेगी।
जिंदा में सारी मेहनत बाह्य को सजाने-संवारने में, कभी अंतरंग की वीभत्सता को दूर करने की कोशिश की ?
चिंतन
सूरज नित्य लौटता है इसलिये नित्य पूर्ण तेजस्विता/ सुंदरता से फिर-फिर आता है।
अभिमन्यु लौटना नहीं जानता था/ लौट नहीं पाया, सो अंत को प्राप्त हुआ।
क्या हम लौटना चाहते/ जानते हैं !
(एन.सी.जैन- नोएडा)
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं… “जो काम पत्र से हो जाय उसके लिये पत्रिका का सहारा क्यों ?”
मुनि श्री संधानसागर जी
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