देव, गुरू, शास्त्र का आश्रय लेने से भावों में निर्मलता आती है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

क्योंकि अपनी बात सबको अच्छी लगती है और आत्मा अपनी है,
इसलिये आत्मतत्व की बात भी सबको अच्छी लगती है ।
पर विषय-भोगों और विकारों के चक्कर में हम उसे झुठलाते रहते हैं ।

हिन्दुओं के कुछ प्रसिद्ध साधु तैलंग स्वामी, शुकदेव, दत्तात्रेय, वामदेव, हारीतक, संवरतक, आरूणी, श्वेतकेतु आदि जिन्होंने दिगम्बरत्व को अपनाया ।

पं. रतनलाल बैनाडा जी

असली मृत्यु-महोत्सव तो मुनिराजों और सल्लेखना पूर्वक मरण करने वालों का ही होता है । पर उसका छोटा रूप देखा भाई स्व. श्री राजेन्द्र कुमार जैन की बीमारी और देहावसान के अवसर पर ।

मृत्यु को मृत्यु-महोत्सव का रूप कैसे दिया जाये ?

  1. बीमारी के समय परिवारजनों के द्वारा धर्म सुनाना, गुरू चरण, सम्मेद शिखर जी आदि तीर्थ, नित्य देव दर्शन करने वाली मूर्तियों का स्मरण कराना और परिजनों के द्वारा पूजा, पाठ, जाप, व्रत, नियम बढ़ाना ।
    बीमारी के 10 दिनों तथा बाद के 13 दिनों में  परिवारजनों द्वारा  नित्य देवदर्शन और धार्मिक क्रियायें एक दिन के लिये भी नहीं छोड़ना ।
  2. Life Support Systems  न लगाने के लिये परिवारजनों के द्वारा Declaration देना ।
  3. बीमारी के दौरान भारी बिल बनने पर हल्के होने की / अपरिग्रह की भावना आना ।
  4. औपचारिकता में परिजनों को आने के लिये मना करना ।
  5. जिनसे भी  थोड़ी बहुत अनबन थी  या वो हमसे रखते थे, उनके प्रति क्षमा भाव धारण करना ।
  6. अंत समय पर कान में णमोकार मंत्र ( भगवान का नाम ) सुनाना ।
  7. देहावसान होने पर नेत्रदान करना  तथा किड़नी आदि अंगों के दान की पहल करना ।
  8. निधन के उपरांत बिना किसी का इंतज़ार किये, शरीर को जल्दी से जल्दी अंतिम संस्कार क्रिया के लिये ले जाना । ( क्योंकि मृत्यु के बाद शरीर में असंख्यात त्रस जीव उत्पन्न होने लगते हैं । )
  9. अंतिम यात्रा में तथा उठावनी के समय सचित्त फूलों की जगह चंदन का प्रयोग करना और तेरहवें दिन उस चंदन को अग्नि में संस्कारित कर घर में सुगंधित वातावरण बनाना ।
  10. विद्युत-दाहग्रह के लिये पहल करना, उस Area  में विद्युत-दाहग्रह ना होने पर, घुनी हुई लकड़ीयों तथा कंड़ों का प्रयोग ना करना ।
  11. परिजनों के द्वारा व्रत / नियम लेना,  नेत्र  और अंगदान की भावना / संकल्प करना ।
  12. तीर्थ-यात्रायें करना और कराना ।
  13. आर्यिका माताजी तथा मुनि महाराजों के दर्शनों को जाना ।
  14. कम से कम Rituals तथा अधिक से अधिक धार्मिक Activities  करना । तीसरे दिन उठावनी पर ही पगड़ी आदि सारी रस्में पूर्ण कर देना, ताकि सब लोग अपने Routine कार्य शुरू कर दें ।
  15. तेरहवें दिन के बाद शांति-विधान करना ।  इस अवसर पर गुरु श्री के प्रवचनों की सी. ड़ी. धर्म प्रभावना के लिये वितरित करना ।
  16. यथाशक्ति दान देना ।

अपन सब इस घटना से कुछ सीख पायें तो यह मृत्यु भी सार्थक हो जायेगी ।

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