ज़रूरी नहीं की हर व्यक्ति आपको समझ पाए,
क्योंकि तराजू केवल वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं।
(अनुपम चौधरी)
व्यक्ति स्वार्थी है, यह पता चलता है नज़दीकियाँ बढ़ने के बाद; और नि:स्वार्थ है, यह पता चलता है उससे दूरियाँ बढ़ने के बाद।
(सुरेश)
समस्या तात्कालिक है,
व्यवस्था त्रैकालिक,
समस्या व्यवस्था है, कर्मों की।
यदि समस्या को व्यवस्था मान लिया (कर्मों की) तो समस्या समाप्त, लेकिन यदि समस्या को अवस्था माना तो दु:ख।
मुनि श्री सुधासागर जी
देश के अनुरूप ही उपदेश देने चाहिये। वे कारगर तभी होंगे।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
यदि बगीचे में गंदगी के ढेर ज्यादा हों तो वे खुशबूदार पौधों को पनपने नहीं देंगे और यदि 2-4 पनप भी गये तो उनकी खुशबू फैलने नहीं देंगे।
(वी.के.जैन भाई- फरीदाबाद)
अच्छी/ बुरी संगति में भी यही नियम लगता है।
परिस्थितिवश सैनिक राष्ट्र रक्षा में हिंसा, प्रकृतिवश डाकू (स्वभाववश)।
परिस्थिति – गाय को बचाने झूठ बोलना।
प्रकृति – गाय को बचाना।
मुनि श्री सुधासागर जी
आज चिड़िया का बच्चा खिड़की के कांच में अपनी छवि देख-देख कर चौंच मार रहा था। बार-बार भगाने पर भी नहीं भाग रहा था।
उसके माता पिता ने ऐसा एक बार भी नहीं किया। वे समझ चुके थे → यह छवि Real नहीं, भ्रम है और भ्रमित होने से चोंच ही घायल होगी, मिलेगा कुछ नहीं।
हम क्यों नहीं समझ पाते ऐसा !
चिंतन
बच्चे के Parents उसे रोक भी नहीं रहे थे, वे जानते थे… रोकने से कोई रुकता नहीं, ठोकर खाकर समझ आती है।
(अंजू- कोटा)
मनोनुकूल
आज्ञा दूँ तो कैसे दूँ
विधि से बंधा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
धर्म कैसे करें ?
जैसे पाप करते हैं, लगातार।
कितना करें ?
Unlimited.
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी (चारित्रसार-चामुंडराय जी)
कितनी भी मुसीबतें आयें, ज्ञानी कभी विचलित नहीं होते।
सूरज का ताप कितना भी प्रचंड हो समुद्र कभी सूखता नहीं/ कम भी नहीं होता।
(हितेष भाई – वडोदरा)
हमें दु:ख वे ही दे सकते हैं जिनसे हमने सुख की चाहत की हो।
(अनुपम चौधरी)
डर के कारण –
1. भयानक दृश्य आदि देखने से जैसे Horror Film.
2. डरावनी चीजों के चिंतन से।
3. शरीर/ मानसिक दुर्बलताओं से।
4. अज्ञान।
कम करने के उपाय –
1. शुभ/ पवित्र का चिंतन/मनन।
2. बलवानों पर श्रद्धा जैसे साधु/ भगवान।
3. बड़ों के साथ रह कर बड़ों का अनुभव(बड़ों को डर कम लगता है।
4. हिम्मत करके Face करने से।
5. तत्व ज्ञान से।
गुरु शिष्य से →
मैं आपका हूँ,
आपके कहने से,
मूर्छा मुक्त हूँ।
(शिष्य गुरु को अपना मानता है सो गुरु शिष्य के कहने से स्वीकारते हैं पर वे शिष्य के मोह में नहीं रहते)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पति को वैदिक परम्परा में ‘पति-परमेश्वर’ कहते हैं।
पर वह ‘परमेश्वर’ कैसे ?
पत्नि जीवन काल में पति को धर्म में लगाये रखती है,
उनके जाने के बाद पत्नी को पूरा समय धर्म के लिये देना चाहिये।
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