विशुद्धि कैसे बढ़ायें?
1. स्व-पर हित वाले कर्म करके
2. सन्तुष्ट/निराकुल रहकर
3. प्रतिकूलताओं में समता रखकर

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आगे बढ़ने वाला व्यक्ति किसी को बाधा नहीं पहुँचाता।
आगे बढ़ने वाला तो रास्ता छोड़ता हुआ/ रास्ता बनाता हुआ/ बाधाओं को हटाता हुआ ही आगे बढ़ेगा न !
और बाधा पहुँचाने वाला कभी आगे नहीं बढ़ पाता।

(एन.सी.जैन)

तो आगे बढ़ने वाले की अनुमोदना करें क्योंकि वह आपके लिये बाधायें हटा रहा है।

चिंतन

आज कोयल की आवाज़ इस सीज़न में पहली बार सुनी।
शुरु में तो अजीब सी आवाज़ आ रही थी, काफ़ी देर बाद सुरीला स्वर निकला।
कारण ?
8-9 माह का अंतराल आ गया था/ अभ्यास नहीं था।

चिंतन

भेद-विज्ञान श्रद्धा तथा ज्ञान से नहीं होता बल्कि प्रज्ञा से होता है।
जैसे दूध में से घी को अलग करना सिर्फ ज्ञान से नहीं विधिवत क्रिया से होता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

जीर्णोद्धार पुराने मंदिरों का करते हैं/ आवश्यक भी है।
पर अपनी आत्मा का मंदिरों से भी ज्यादा आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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