कर्मोदय ऐसा ही है जैसे बांबी से बाहर आया हुआ साँप।
यदि आप उसे सहजता से देखते रहे उसमें Involve नहीं हुये तो वह सहजता से निकल जायेगा।
आपको काटेगा नहीं/ ज़हर फैलेगा नहीं।

मुनि श्री सुधासागर जी

प्राय: बच्चे/ शिष्य उद्दंड होते हैं, उनको डंडे की जरूरत होती है,
पर डंडा गन्ने का होना चाहिये।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

साधक-कारण पूरे होने पर भी जरूरी नहीं कि कार्य पूर्ण हो ही जैसे घड़े बनाने के सारे कारण पूर्ण होने पर भी यदि बरसात (बाधक-कारण) आ जाये तो सफलता नहीं।

मुनि श्री अरुणसागर जी

संथारा- (श्वेताम्बर परंपरा) = आखिरी शयन,
Jumping Board – इस शरीर से दूसरे शरीर के लिये।
सल्लेखना – (दिगम्बरी परंपरा) – भीतर कषाय (क्रोधादि) को कृष करना तथा शरीर को कृष होते देखना, जब Unrepairable हो जाय तब पोषण/ पुष्ट करना छोड़ना।
समाधि – ( गृहस्थों को) = जहाँ आधि (मानसिक रोग/Tension), व्याधि (शारीरिक रोग), उपाधि – लोकेषणा, तीनों को छोड़ भगवान का नाम लेते हुए शरीर छोड़ना ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

भगवान/गुरु वाणी पानी की तरह होती है,
पानी पात्रानुसार आकार ग्रहण कर लेता है;
भगवान/गुरु वाणी भी पात्र के अनुसार खिरती है।

मुनि श्री अरुणसागर जी

विशुद्धि कैसे बढ़ायें?
1. स्व-पर हित वाले कर्म करके
2. सन्तुष्ट/निराकुल रहकर
3. प्रतिकूलताओं में समता रखकर

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आगे बढ़ने वाला व्यक्ति किसी को बाधा नहीं पहुँचाता।
आगे बढ़ने वाला तो रास्ता छोड़ता हुआ/ रास्ता बनाता हुआ/ बाधाओं को हटाता हुआ ही आगे बढ़ेगा न !
और बाधा पहुँचाने वाला कभी आगे नहीं बढ़ पाता।

(एन.सी.जैन)

तो आगे बढ़ने वाले की अनुमोदना करें क्योंकि वह आपके लिये बाधायें हटा रहा है।

चिंतन

आज कोयल की आवाज़ इस सीज़न में पहली बार सुनी।
शुरु में तो अजीब सी आवाज़ आ रही थी, काफ़ी देर बाद सुरीला स्वर निकला।
कारण ?
8-9 माह का अंतराल आ गया था/ अभ्यास नहीं था।

चिंतन

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