जीर्णोद्धार पुराने मंदिरों का करते हैं/ आवश्यक भी है।
पर अपनी आत्मा का मंदिरों से भी ज्यादा आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

इस जीवन में किसी ने लगातार पाप किये पर मरते समय/ अगले जीवन के निर्णय का समय आने पर भाव बहुत अच्छे हो गये/पश्चातापादि कर लिया। तो अगले जीवन में मनुष्य तो बनेगा पर जीवन भर दु:खी रहेगा।
इसका विपरीत… जीवन भर अच्छे काम, अंत में भाव खराब… जानवर बनेगा पर ठाट से सेवा होगी।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

(यदि पाप इतने ज्यादा किये कि नरक जाना पड़ा तो बड़े-बड़े पुण्य भी छोटे से छोटा फल भी नहीं दे पायेंगे)

सिगरेट पीते समय भगवान का नाम लेने से, सिगरेट छूटने की संभावना रहेगी।
भगवान का नाम लेते समय सिगरेट पीने से भगवान के नाम छूटने की संभावना होगी।

मुनि श्री अरुणसागर जी

पहले कर्ज़ से डरते थे, मरण से नहीं;
आज मरण से डरते हैं, कर्ज़ से नहीं।
मूल “स्वत:” का, ब्याज “पर” का होता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

पुत्र के वैराग्य भावों से डरकर पिता ने उसे सुरा-सुंदरियों से घिरवा दिया। बेटे ने सन्यास न लेकर संसार ही चुना।
1. उसके जीवन का अंजाम क्या हुआ होगा !
2. क्या हमने अपने जीवन को ऐसे ही नहीं घेर रखा है !!
3. क्या हमको अपने बारे में सोचने का समय है !!

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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