संस्मरण…
मेरे आँगन में एक अमरूद का पेड़ है।
अचानक उसमें से गंदा-गंदा रस टपकने लगा। दवायें प्रयोग की गयीं पर लाभ नहीं हुआ। तब मैंने प्यार से उस पेड़ पर हाथ फेर कर प्रार्थना की। अगले दिन से आँगन साफ रहने लगा। अब मैं रोज उस पेड़ को प्यार करती हूँ।

परवीन- ग्वालियर

गुरु सिर्फ दर्शन (देखने) की चीज़ नहीं,
उनके दर्शन आत्मदर्शन करने में निमित्त हैं।
जिन लोगों से धर्म की प्रभावना होती है (या धार्मिक आयोजनों से सम्बंधित हों) उनको अधिक समय दिया जाता है।
उनके पुण्य भी सामान्यजन से विशेष/ अधिक होते हैं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

जरा न चाहूँ *,
अजरामर** बनूँ
नज़र*** चाहूँ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

* वृद्धावस्था
** अजर-अमर
*** गुरु/ भगवान की कृपा-दृष्टि

100 लोगों को सुगंधित पुलाव दिया गया। शैफ ने कहा चावल जैसा एक कंकड़ रह गया है। 1 व्यक्ति को छोड़कर सब डरे-डरे/सावधानीपूर्वक खाते रहे। पुलाव का आनंद भय में खो गया।
कोरोना वही कंकड़ था जो ज्यादातर को जीवन रूपी पुलाव का आनंद नहीं लेने दे रहा था।

(अपूर्व श्री)

देव-दर्शन का मुख्य उद्देश्य ?
प्रसन्नता प्राप्त करना….
1. भगवान सब अभावों में भी प्रसन्न रहते हैं। भगवान की दृष्टि अपने पर रहती है। हम भी अपनी दृष्टि “पर” से हटाकर ही प्रसन्न/ शांत/सुखी रह सकते हैं।
2. नित्य उनके दर्शन करके प्रसन्नता के लिये प्रेरित हो सकते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

महाराज आपका स्वास्थ्य कैसा है ?
स्वास्थ्य 3 प्रकार से ख़राब होता है →
1. मानसिक….श्रद्धा की कमी से होता है।
2. पेट की ख़राबी से…. रसना की गृद्धता से।
3. कर्मोंदय से…. मन की दुर्बलता से।
साधुजनों के पहले दो तो होते नहीं, तीसरे में पापोदय तो होगा पर मन को सबल बनाये रखने से उसे कर्म काटने का माध्यम जानकर दुःख का कारण नहीं।

मुनि श्री मंगलानंदसागर जी

शाकाहारी जीवों को कैसे पहचानेंगे ?

1. शाकाहारी जीवों की आँखें गोल न होकर लम्बाई लिये होती हैं।
2. नाखून नुकीले नहीं होते, चौड़े/ चपटे होते हैं जैसे गाय, घोड़ा
3. मांसाहारी शरीर को ठंडा रखने के लिये जीभ बाहर निकाले रखते हैं।
हमारे अंदर ये शाकाहारी लक्षण होते हुए भी हम प्रकृति के विपरीत क्यों ?

(अरविंद)

गरीब शिक्षक दूर स्कूल पैदल जाता था। कभी कोई अपने वाहन में बैठा लेता।
कुछ दिनों बाद उसने मोटर साइकिल खरीद ली। अब वह सबको Lift देने लगा। एक दिन उसकी मोटर साइकिल एक ठग छीन ले गया।
अगले दिन मोटर साइकिल उसके घर के बाहर खड़ी थी, साथ में एक चिट्ठी थी → जहाँ भी जाता हूँ, सब यही पूछते हैं, मास्टरजी की मोटरसाइकिल तुम्हारे पास कैसे आयी ? कबाड़ी भी खरीदने को तैयार नहीं है।
परोपकार का फल !

(एकता-पुणे)

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