दुःख में ज्यादा दुखी होंगे तो दु:ख ज्यादा होंगे।
दुःख में कम दुखी होगे तो दु:ख कम होंगे।
जैसे शरीर पर से साँप निकलना दुःख का कारण। यदि चीख पुकार की तो साँप डस लेगा, दुःख बहुत ज्यादा। शांति से भगवान का नाम लेते रहे तो दुःख कम।

चिंतन

जानवर जब संयम में नहीं होते तब खुरों से जमीन खोदते हैं, इसलिये उन्हें खुराफाती कहते हैं।
खुराफाती मनुष्य यह काम मन से करते हैं (बिना बात, भूत काल की बातों को खोदते रहते हैं)।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सम्मान/ प्रतिष्ठा की चाहत उतनी ही करनी चाहिए,
जितना देने का सामर्थ्य रखते हो।
क्योंकि….
जो देते हो उससे ज्यादा वापिस कैसे और क्यों मिलेगा !

(अनुपम चौधरी)

समस्या तात्कालिक है,
व्यवस्था त्रैकालिक,
समस्या व्यवस्था है, कर्मों की।
यदि समस्या को व्यवस्था मान लिया (कर्मों की) तो समस्या समाप्त, लेकिन यदि समस्या को अवस्था माना तो दु:ख।

मुनि श्री सुधासागर जी

यदि बगीचे में गंदगी के ढेर ज्यादा हों तो वे खुशबूदार पौधों को पनपने नहीं देंगे और यदि 2-4 पनप भी गये तो उनकी खुशबू फैलने नहीं देंगे।

(वी.के.जैन भाई- फरीदाबाद)

अच्छी/ बुरी संगति में भी यही नियम लगता है।

परिस्थितिवश सैनिक राष्ट्र रक्षा में हिंसा, प्रकृतिवश डाकू (स्वभाववश)।
परिस्थिति – गाय को बचाने झूठ बोलना।
प्रकृति – गाय को बचाना।

मुनि श्री सुधासागर जी

आज चिड़िया का बच्चा खिड़की के कांच में अपनी छवि देख-देख कर चौंच मार रहा था। बार-बार भगाने पर भी नहीं भाग रहा था।
उसके माता पिता ने ऐसा एक बार भी नहीं किया। वे समझ चुके थे → यह छवि Real नहीं, भ्रम है और भ्रमित होने से चोंच ही घायल होगी, मिलेगा कुछ नहीं।
हम क्यों नहीं समझ पाते ऐसा !

चिंतन

बच्चे के Parents उसे रोक भी नहीं रहे थे, वे जानते थे… रोकने से कोई रुकता नहीं, ठोकर खाकर समझ आती है।

(अंजू- कोटा)

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