दुःख में ज्यादा दुखी होंगे तो दु:ख ज्यादा होंगे।
दुःख में कम दुखी होगे तो दु:ख कम होंगे।
जैसे शरीर पर से साँप निकलना दुःख का कारण। यदि चीख पुकार की तो साँप डस लेगा, दुःख बहुत ज्यादा। शांति से भगवान का नाम लेते रहे तो दुःख कम।
चिंतन
मेरा तो क्या है ! मैं तो पहले से हारा,
तुझ से ही पूछेगा यह संसार सारा…
डूब गयी क्यों नैया तेरे रहते खेवनहार !!
यहाँ से ग़र जो हारा, कहाँ जाऊँगा सरकार ?
जीवन में समानभूति के बिना स्वानुभूति नहीं आ सकती है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जानवर जब संयम में नहीं होते तब खुरों से जमीन खोदते हैं, इसलिये उन्हें खुराफाती कहते हैं।
खुराफाती मनुष्य यह काम मन से करते हैं (बिना बात, भूत काल की बातों को खोदते रहते हैं)।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मौन हो जाने पर सही से सुनाई भी देता है, दिखाई भी देता है।
(अपूर्व श्री)
सम्मान/ प्रतिष्ठा की चाहत उतनी ही करनी चाहिए,
जितना देने का सामर्थ्य रखते हो।
क्योंकि….
जो देते हो उससे ज्यादा वापिस कैसे और क्यों मिलेगा !
(अनुपम चौधरी)
रास्ते और धर्म कभी बंद नहीं होते।
पर लुटेरे रास्तों को और धर्मात्मा कभी-कभी धर्म को बदनाम कर देते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
ज़रूरी नहीं की हर व्यक्ति आपको समझ पाए,
क्योंकि तराजू केवल वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं।
(अनुपम चौधरी)
व्यक्ति स्वार्थी है, यह पता चलता है नज़दीकियाँ बढ़ने के बाद; और नि:स्वार्थ है, यह पता चलता है उससे दूरियाँ बढ़ने के बाद।
(सुरेश)
समस्या तात्कालिक है,
व्यवस्था त्रैकालिक,
समस्या व्यवस्था है, कर्मों की।
यदि समस्या को व्यवस्था मान लिया (कर्मों की) तो समस्या समाप्त, लेकिन यदि समस्या को अवस्था माना तो दु:ख।
मुनि श्री सुधासागर जी
देश के अनुरूप ही उपदेश देने चाहिये। वे कारगर तभी होंगे।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
यदि बगीचे में गंदगी के ढेर ज्यादा हों तो वे खुशबूदार पौधों को पनपने नहीं देंगे और यदि 2-4 पनप भी गये तो उनकी खुशबू फैलने नहीं देंगे।
(वी.के.जैन भाई- फरीदाबाद)
अच्छी/ बुरी संगति में भी यही नियम लगता है।
परिस्थितिवश सैनिक राष्ट्र रक्षा में हिंसा, प्रकृतिवश डाकू (स्वभाववश)।
परिस्थिति – गाय को बचाने झूठ बोलना।
प्रकृति – गाय को बचाना।
मुनि श्री सुधासागर जी
आज चिड़िया का बच्चा खिड़की के कांच में अपनी छवि देख-देख कर चौंच मार रहा था। बार-बार भगाने पर भी नहीं भाग रहा था।
उसके माता पिता ने ऐसा एक बार भी नहीं किया। वे समझ चुके थे → यह छवि Real नहीं, भ्रम है और भ्रमित होने से चोंच ही घायल होगी, मिलेगा कुछ नहीं।
हम क्यों नहीं समझ पाते ऐसा !
चिंतन
बच्चे के Parents उसे रोक भी नहीं रहे थे, वे जानते थे… रोकने से कोई रुकता नहीं, ठोकर खाकर समझ आती है।
(अंजू- कोटा)
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