आज चिड़िया का बच्चा खिड़की के कांच में अपनी छवि देख-देख कर चौंच मार रहा था। बार-बार भगाने पर भी नहीं भाग रहा था।
उसके माता पिता ने ऐसा एक बार भी नहीं किया। वे समझ चुके थे → यह छवि Real नहीं, भ्रम है और भ्रमित होने से चोंच ही घायल होगी, मिलेगा कुछ नहीं।
हम क्यों नहीं समझ पाते ऐसा !
चिंतन
बच्चे के Parents उसे रोक भी नहीं रहे थे, वे जानते थे… रोकने से कोई रुकता नहीं, ठोकर खाकर समझ आती है।
(अंजू- कोटा)
मनोनुकूल
आज्ञा दूँ तो कैसे दूँ
विधि से बंधा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
धर्म कैसे करें ?
जैसे पाप करते हैं, लगातार।
कितना करें ?
Unlimited.
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी (चारित्रसार-चामुंडराय जी)
कितनी भी मुसीबतें आयें, ज्ञानी कभी विचलित नहीं होते।
सूरज का ताप कितना भी प्रचंड हो समुद्र कभी सूखता नहीं/ कम भी नहीं होता।
(हितेष भाई – वडोदरा)
हमें दु:ख वे ही दे सकते हैं जिनसे हमने सुख की चाहत की हो।
(अनुपम चौधरी)
डर के कारण –
1. भयानक दृश्य आदि देखने से जैसे Horror Film.
2. डरावनी चीजों के चिंतन से।
3. शरीर/ मानसिक दुर्बलताओं से।
4. अज्ञान।
कम करने के उपाय –
1. शुभ/ पवित्र का चिंतन/मनन।
2. बलवानों पर श्रद्धा जैसे साधु/ भगवान।
3. बड़ों के साथ रह कर बड़ों का अनुभव(बड़ों को डर कम लगता है।
4. हिम्मत करके Face करने से।
5. तत्व ज्ञान से।
गुरु शिष्य से →
मैं आपका हूँ,
आपके कहने से,
मूर्छा मुक्त हूँ।
(शिष्य गुरु को अपना मानता है सो गुरु शिष्य के कहने से स्वीकारते हैं पर वे शिष्य के मोह में नहीं रहते)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पति को वैदिक परम्परा में ‘पति-परमेश्वर’ कहते हैं।
पर वह ‘परमेश्वर’ कैसे ?
पत्नि जीवन काल में पति को धर्म में लगाये रखती है,
उनके जाने के बाद पत्नी को पूरा समय धर्म के लिये देना चाहिये।
चिंतन
ताकतवर से प्राय: कहते हैं – “एक दिन मेरा भी आयेगा”
यही बात विश्वास के साथ कभी भगवान से कह कर देखो, एक दिन ख़ुद भगवान बन जाओगे।
मुनि श्री विनम्रसागर जी
अच्छा नहीं होता, ज्यादा अच्छा होना भी।
Shakespeare – I always feel happy because I don’t expect anything from anyone.
Before you Speak, Listen.
Before you Write, Think.
Before you Spend, Earn.
Before you Hurt, Feel.
Before you Die. Live.
मंदिर/ दिन में धर्मध्यान, व्यवसाय/ रात में, बेईमानी/ मस्ती ये Balanced Life नहीं कही जा सकती।
धर्म/ ईमानदारी के साथ सीमित Enjoyment Balanced Life कही जानी चाहिये।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गृहस्थ भरोसे वाला नहीं तो बुरा।
साधु भरोसे वाले नहीं तो अच्छा/ पहुँचा हुआ (कब छोड़कर चल देंगे, पता नहीं)।
चिंतन
चक्की के दो पाट, एक गतिमान दूसरा स्थिर, तभी अनाज पिसता है;
दोनों गतिमान रहेंगे तो कार्य(आटा पिसना) होगा क्या ?
जब मन स्थिर, शरीर गतिमान होगा, तभी सफलता मिलेगी।
(सुरेश)
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