क्रिया = जल छानना।
अर्थ-क्रिया = जीवों की रक्षा के भाव से, जल छानना।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
भगवान के ज्ञान को जैसे का तैसा समझना/ समझाना चाहिये।
नमक मिर्च लगाने से भोजन का असली स्वाद/ सत्य समाप्त हो जाता है, स्वास्थ्य/ आत्मा के लिये स्वास्थ्यवर्धक/ कल्याणकारी नहीं रह जाता है।
खोई वस्तु को योग्य स्थान ( जहाँ वस्तु खोई हो) पर ही ढूंढ़ना चाहिये।
यदि वहाँ अंधकार हो तो स्थान को प्रकाशित (ज्ञान) कर लें।
बिगड़े हालातों को सुधारने का भी कारगर उपाय ज्ञान (कर्म-सिद्धांत) ही है।
सुमरण…. भगवान का नाम लेते हुए मरण।
समाधि मरण…. क्रमश: भोजनादि छोड़ते हुए भगवान के स्मरण के साथ मरण।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Fire Place में बीच में एक लकड़ी का बड़ा टुकड़ा जल रहा था। आसपास छोटे-छोटे टुकड़े धीरे-धीरे जल रहे थे।
बड़े टुकड़े को हटा दो तो छोटे-छोटे जल्दी बुझ जाते हैं,
छोटों को हटाने पर बड़ा भी ज्यादा देर प्रकाश/ गर्माहट नहीं दे पायेगा।
(ज्योति-देहली)
शेर का मुखौटा लगा कर बच्चा माँ को डरा नहीं पाता क्योंकि माँ तो असली चेहरे को जानती है।
भगवान भी तो असली चेहरे को जानते हैं, कम से कम भगवान/ गुरु के सामने तो मुखाटा उतार कर जायें !
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
My way is with (always) Highway.
सबको साथ लेकर चलने के लिए….
कुछ सब्र, कुछ बर्दाश्त तथा बहुत कुछ नज़र-अंदाज़ करके चलना होगा।
(अंजली – जयपुर)
राजा को 3 मूर्तियाँ बहुत प्रिय थीं। सेवक से एक मूर्ति टूट गयी।
राजा ने मृत्युदंड दे दिया।
सेवक ने बाकी 2 मूर्तियाँ भी तोड़ दीं।
कारण ?
मूर्तियाँ तो किसी से भी/ कभी भी टूट सकती हैं, तब राजा 2 और सेवकों को फांसी देंगे।
राजा ने सेवक का धैर्य/ विवेक/ दया भाव देख, उसे माफ़ कर दिया।
(एन.सी.जैन- नौएडा)
दया का कथन ज़ुदा है, करन ज़ुदा।
अब तो कृपाण पर भी गुदा रहता है → “दया धर्म का मूल है”,
जबकि कृपाण के तो, नाम में ही उसका काम छुपा है → कृपा+न (ण)।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Label बाह्य और Level* अंतरंग, प्राय: अलग-अलग।
बाह्य का Label मिट भी जाय तो भी अंदर की दवा काम करेगी। Label कितना भी सुंदर हो पर दवा का Level न हो तो कारगर नहीं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
* स्तर
विनोबाभावे जी के घर एक अनाथ बच्चा रहता था।
विनोबा जी की माँ उस बच्चे को गरम और अपने बेटे को ठंडी रोटी देतीं थीं।
कारण ?
माँ… अपने बेटे में मुझे अपना रूप दिखता है, अतिथि बच्चे में अपना स्वरूप।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
पूरे सात मिनिट तक अस्पताल का गेट दिखाते रहे। दर्शकों का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। सीन बदला, तो एक बुज़ुर्ग सात मिनिट तक छत देखते रहे।
नर्स, डाक्टर आते-जाते रहे।
तब घोषणा हुई: “आप सात मिनिट तक एक सीन नहीं देख पाये। ऐसे कितने मरीज़ हैं, जो सालों से अंधेरा ही देखते रहते हैं, या एक ही अस्पताल का सीन? उनका दर्द महसूस करें; अपने को भाग्यशाली मानें!”
हर दर्शक की आंखों में आँसू थे। आधे लोगों की, ऐसे मरीज़ों के दुर्भाग्य पर; और शेष की, अपने सौभाग्य को नज़र-अंदाज़ करने पर।
गुणी व्यक्ति ही दूसरे के गुण को पहचान सकता है, गुणहीन नहीं।
बलवान ही दूसरे के बल को पहचानता है, बलहीन नहीं।
बसंत ऋतु आये तो उसे कोयल ही पहचान सकती है, कौआ नहीं।
सिंह के बल को हाथी पहचानता है, चूहा नहीं।
(सुरेश – इंदौर)
किसान ने अपनी लड़की की शादी के लिये शर्त रखी….
मेरे 3 बैल हैं, किसी की भी पूंछ पकड़ कर दिखा दो।
पहला बैल Normal था, पर युवक कमजोर वाले का इंतजार करने लगा।
दूसरा बहुत तगड़ा निकल गया।
तीसरा कमजोर तो था पर उसके पूँछ ही नहीं थी।
पहले अवसर को ही लेने की कोशिश करनी चाहिये।
(एन.सी.जैन)
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