ऊपर उठने/ ऊँचे आकाश में स्थापित होने के लिये राकेट को नीचे के भागों को छोड़ना पड़ता है।
लोगों की तथा अपनी नज़र में उठने के लिये आलोचनाओं को नज़रअंदाज़ करना होगा।

उज्वल पाटनी

Old Age  Senior Citizen 
1 Support, लेते हैं Support देते हैं, युवाओं को
2 छुपाने का मन उजागर करने का
3 अहंकारी अनुभवी, विनम्र, संयमी
4 नयी पीढ़ी के विचारों से टकराता है Adjust, नये विचारों को अपनाते भी हैं
5 अपनी राय थोपते हैं दूसरों को समझ‌ते हैं

(अरविंद)

यदि निरंतर बहने/ चलने का स्वभाव हो तब बांध भी बना दो तो भी प्रगति/ चलने को रोक नहीं सकते।
तब जल स्तर ऊपर चलने लगता है और बढ़ते-बढ़ते बांध के ऊपर से बहना शुरू कर देगा।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

करोड़ों बार स्तोत्र पढ़ने/ भक्तामर आदि का अखंड पाठ जीवन भर करने से उतना फल नहीं मिलेगा, जितना पाँच मिनट सब जीवों के सुखी रखने के भाव भाने से मिलेगा।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सोना तपाने से शुद्ध हो जाता है फिर भी सोने के तरल होने पर उसमें सुहागा डाला जाता है ताकि उसकी शुद्धता बनी रहे।
श्रावक भी उपवासादि से शुद्ध तो होता है पर संयम रखने से वह शुद्धता बनी रहती है।

मुनि श्री मंगलानंद जी

रावण धर्म का पंडित, मज़बूत/ सुरक्षित किले के अंदर, बड़ी सेना का मालिक, फिर भी हार गया।
जबकि राम थोड़ी सी सेना के साथ किले के बाहर फिर भी जीते।
कारण ?
राम संयमी थे, रावण असंयमी।

मुनि श्री सुधासागर जी

संसार की वेदना को मिटाने के लिए तप रूपी बाम को लगाना होगा।
कषाय (मायादि) के टेढ़ेपन को ताप से ही सीधा किया जा सकता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

संसार में धन संचय से समृद्धि/ प्रगति बताई, धर्म में दुर्गति।
लेकिन संचित समृद्धि का सदुपयोग किया तो शाश्वत प्रगति।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप।
पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो रही है, पाप का बाप लोभ।

निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

आचार्य श्री विद्यासागर जी को बताया गया कि अध्यात्म/ध्यान शिविर लगाया जा रहा है और उसके लिये बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाया जा रहा है।
आचार्यश्री ने कहा, “अध्यात्म तथा ध्यान तो स्वयं में, स्वयं के लिये और स्वयं के द्वारा होते हैं। फिर दूसरे विद्वान इसमें क्या करेंगे?”

आचार्य श्री विद्यासागर जी

पूर्ण को जाना नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है जैसे पूरे चावलों को जानने चले (दबा-दबा कर देखा) तो चावल की जगह गूदा बन जायेगा।

मुनि श्री सुधासागर जी

ऋतुओं में त्याग :

अगहन – ज़ीरा
पौसे – धना
माघे – मिश्री
फागुन – चना
चैते-गुड़
बैसाखे – तेल
जेठे – राई
असाढ़े – बेल
सावन – निम्बू
भादों – मही
क्वार – करेला
कार्तिक-दही

इन बारह से बच्यो नहीं, तो मर्यो, नहीं तो पर्यो सही!

(अगहन – Dec, पौष – Jan, माघ – Feb, फाल्गुन – March, चैत – April, वैशाख – May, ज्येष्ठ – June, आषाढ़ – July, श्रावण – Aug, भाद्रपद – Sep, अश्विन – Oct, कार्तिक – Nov)

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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