पूर्ण आनंद साधु को ही जैसे बुखार उतरने पर आता है।
गृहस्थ का आनंद तो वैसा है जैसे मरीज का बुखार 105 डिग्री से 101 डिग्री हो गया हो।
निर्यापक निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
थोड़े से आदर से स्पर्श तो करके देखिये,
इंसान का ह्रदय भी टच स्क्रीन से कम नहीं..
(अरविंद बड़जात्या)
एक दिन 3 दु:खद समाचार आये –
1. करीबी रिश्तेदार
2. वफ़ादार ड्राइवर
3. ड़ेढ़ माह से घर में पल रहा चिड़िया का बच्चा,
नहीं रहे।
सबसे ज्यादा दु:ख चिड़िया के बच्चे के न रहने का हुआ, क्योंकि हर समय वह सम्पर्क में रहता था।
दुःख कम करना है तो सम्पर्क कम रखें।
चिंतन
निडरता, ज्ञान (सांप नहीं है, रस्सी है) तथा श्रद्धा से (देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्धांत पर)।
भविष्य के लिये – “जो हो, सो हो”
वर्तमान में – “जो है, सो है”
उसी रूप में स्वीकृति से निडरता आती है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
जीवन एक खेल है।
यह हम पर निर्भर करता है कि हम खिलाड़ी बनें या खिलौना !
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
“Hard work beats talent when talent doesn’t work as hard.”
– Tim Tebow (Pranshi).
51% से अधिक जिसकी ओर हो, गाने उसके ही गाने में समझदारी होगी न !
51 से अधिक वर्षों की उम्र में, अगले जन्म/ भगवान की ओर ज्यादा हुए न !!
तो गुणगान किसका करना चाहिये ?
चिंतवन/ तय्यारी अगले जन्म की अधिक या इस जन्म में ही लगे रहना है ?
चिंतन
रोशनी* नहीं,
आग** जलाऊँ ताकि,
कर्म दग्ध*** हों।
*ज्ञान **तप ***जलना/समाप्त होना
आचार्य श्री विद्यासागर जी
समस्या को व्यवस्था में बदल लें/ कर लें, तो समस्या, समस्या नहीं रहती/ दु:ख नहीं होता।
जैसे कांटा लगा (समस्या), सुई की व्यवस्था की, कांटा निकाल लिया, दु:ख समाप्त।
मुनि श्री सुधासागर जी
“There was never a night (i.e. a problem) that could defeat sunrise (i.e. hope).”
(J.L.Jain)
ज़िंदगी Musical Chair का खेल ही है – एक-एक करके कुर्सियाँ ख़त्म होती जाती हैं, एक-एक करके व्यक्तियों का खेल समाप्त होता जाता है।
अंत में हमारा भी संगीत/ खेल समाप्त हो जायेगा, कुर्सी छीन ली जायेगी।
चिंतन
लेकिन जो खेल जीत जाता है, उसकी कुर्सी नहीं खिसकती (उसे मोक्ष की स्थायी कुर्सी मिल जाती है)……………..निधि – मुम्बई
Human Life in 3 sentences –
1. Humans spend money which they don’t have.
2. They buy things which they don’t need,
3. They try to impress the people they don’t like.
गुब्बारा फूटा,
क्यों मत पूछो, पूछो
फुलाया क्यों था ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बड़ी Post के Interview में Comfort Zone से बाहर निकलने का कारण बताने पर Selection हुआ तथा Appreciate किया गया।
अंजू-कोटा
(हम सब तो Comfort Zone में ही रहना चाहते हैं/Comfort Zone कम होने पर दु:खी हो जाते हैं !)
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