जीवन में अच्छे से अच्छे तथा बुरे से बुरे लोगों के सम्पर्क में रहना पड़ता है।
उनसे क्या सीख लें ?
रावण जैसे बुरे से लक्ष्मण ने ज्ञान लिया।
राम जैसे अच्छे से….सीताओं के दुःखों में निमित्त न बनें।

उँगलियाँ अलग-अलग Size, मोटाई, strength की क्यों ?
सबसे छोटी उँगली कान की सफाई के लिये पतली, कम लंम्बी ताकि पर्दे को नुकसान न पहुँचे। अगली मोटी आँख साफ करने, बीच की गले के लिये ताकि आखिर तक पहुँचे, चौथी नाक के साइज़ की, अंगूठा ताकत के कामों के लिये।
ऐसे ही परिवार/समाज में Variations होते हुए भी सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता होती है।

चिंतन

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या ज़ुर्म है पता ही नहीं।
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं।।

कृष्ण बिहारी नूर

ज़िंदगी सज़ा भी है, श्रंगार भी।
ज़ुर्म तो यही था कि जो ज़िंदगी तुमको आत्मोत्थान के लिये मिली थी/हीरा तराशने को मिला था, उसे तुमने टुकड़े-टुकड़े करके औरों को बांट दिया, अपने लिए कुछ बचाया ही नहीं।

चिंतन

पानी दूध से अच्छे से संबंध निभाता है – पानी का मूल्य दूध के बराबर हो जाता है, दूध को जब ज़रूरत से ज्यादा उबाला जाता है, उसके अस्तित्व को बनाये रखने के लिये पानी के छींटे कारगर होते हैं।
पर जब दोनों के बीच थोड़ी सी खटास (नींबू) आ जाती है तब दूध का रूप विकृत हो जाता है।
आपसी संबंधों को भी हम खटास प्रकृति वाले व्यक्तियों से दूर रखें।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

अंकित जैन आगरा के अस्पताल में वेंटीलेटर पर थे। अस्पताल में ऑक्सीजन समाप्त हो रही थी।
अंकित के आग्रह पर मुनि श्री प्रमाणसागर जी का सम्बोधन रिकार्ड करवा के सुनाया गया।
ऑक्सीजन समाप्त होने पर भी अंकित सहज रहे।
उनके लिये ऑक्सीजन सिलेन्डर दिल्ली से भेजा गया पर तब तक अंकित उस स्थिति से बाहर आ चुके थे, उनने सिलेन्डर का भी प्रयोग नहीं किया, अन्य मरीजों को दे दिया।

(अंजू – कोटा)

“पर” के ऊपर की गयी दया से स्वयं की याद आती है (आत्मा की, उसके दया स्वभाव की)।
जैसे चंद्र पर दृष्टि डालने से, नभ पर भी दृष्टि पड़ती है।
(नभ पर दृष्टि डालने से, चंद्र पर भी दृष्टि पड़ती है)

आचार्य श्री विद्यासागर जी (मूकमाटी)

आत्मा समझ में नहीं आता तो अनात्मा को समझ लो।
“पर” को भूलने की कला सीख ली तो स्व (आत्मतत्त्व) प्राप्त हो जायेगा।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

धन से सम्बंध उतना ही रखो जैसे दीपक जलाते समय माचिस और तीली का होता है।
तीली के ज्यादा पास आये तो जल जाओगे, तब तीली को फेंक देते हैं।
ऑंख बंद होने से पहले फेंक दो, वरना कुंडलीमार बनकर रखवाली करते फिरोगे।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

महावीर भगवान ने सृष्टि के अनुरूप अपनी दृष्टि बनायी।
बौद्ध आदि जैसा महावीर भगवान के नाम से कोई धर्म नहीं बना।
दया, चारित्र, वस्तु के स्वभाव को धर्म कहा।
सच्चा ज्ञान वह नहीं जो दिख रहा है बल्कि यथार्थ को जानना है।
सृष्टि को देखना/समझना धर्म है।

मुनि श्री सुधासागर जी

रेखा 5 K.M. 50″ पहुंचती है, सरिता 40″ में, स्वस्थ कौन?
पर अन्य Factors पर ध्यान दिया?
सरिता यदि बालू पर! उनकी उम्र, वजनादि पर।
अवसर, संसाधन, समस्यायें अलग-अलग हो सकते हैं!
निर्णय लेते समय इनका ध्यान रखना होगा।

(अपूर्वा श्री)

मैं के साथ विशेषण “अह्म” को जन्म देता है, हटते ही/”मैं” को “मैं रूप” देखते ही “अर्हम” आ जाता है।
“अह्म” से “अर्हम” तक की यात्रा ही मोक्षमार्ग है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

संसार सागर में कश्ती तो भाग्य की लहरों/हवा के सहारे ही चलती/पहुँचती है।
पुरुषार्थ का काम तो बस डूबने से बचाने के लिये Balance बनाये रखना है।

चिंतन

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728