• विषय-भोग जीवन को मुश्किल में डालते हैं।
  • तपस्या मुश्किल में नहीं डालती । तपस्या तो जीवन को आसान बना देती है।
  • जिसके मन में निरन्तर इच्छाएँ उठ रही हैं, उसका मन कभी नहीं भरता, वह तप नहीं कर सकता।

मुनि श्री क्षमासागर जी

अपने मन-वचन और इन्द्रियों को संयमित कर लेना, नियमित कर लेना, नियन्त्रित कर लेना, इसी का नाम संयम है।
यदि हमने अपने जीवन में सत्य-ज्योति हासिल कर ली है तो हमारा दायित्व है, हमारा कर्तव्य है कि हम उस पर संयम की एक चिमनी भी रख दें जिससे वह सच्चाई की ज्योति कभी बुझ नहीं पाये।

मुनि श्री क्षमासागर जी

  • जिसका मन जितना सच्चा होगा उसका जीवन भी उतना ही सच्चा होगा।
  • जीवन उन्हीं का सच बनता है जो कषायों से मुक्त हो जाते हैं।

मुनि श्री क्षमासागर जी

अपन आनन्द लें उस चीज़ का जो अपने को प्राप्त है।
जो अपने पास है वह नहीं दिखता, जो दूसरों के पास है हमें वह दिखता है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं।
कृत्रिमता का कारण है…. हम अपने को वैसा दिखाना चाहते हैं जैसे हम हैं नहीं।

मुनि श्री क्षमासागर जी

दूसरों के गुणों में अगर हम आह्लाद महसूस करते हैं तो मानियेगा हमारे भीतर मृदुता-कोमलता आनी शुरू हो गयी है।
तृप्ति मान-सम्मान से भी नहीं मिलती बल्कि मान-सम्मान मिलने के साथ हमारे भीतर जो कृतज्ञता और विनय आती है उससे तृप्ति मिलती है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

———————————————–
जिसने मन कौ मार दयौ,
उसके मार्दव-धर्म आ गयौ।

2) जन्म लेते ही सबसे पहले मान का उदय होता है।

आचार्य श्री विद्या सागर जी
———————————————–

मार्दव-धर्म की पराकाष्ठा….
80 वर्षीय आचार्य श्री ज्ञान सागर जी ने अपने युवा शिष्य को अपना गुरु बना कर समाधि-मरण की प्रार्थना की।

मुनि श्री विनम्र सागर जी

जो जितना सामर्थ्यवान होगा वह उतना क्षमावान भी होगा।
जो जितना क्रोध करेगा वह उतना ही कमजोर होगा।

कागज़ की किश्ती
कुछ देर
लहरों से खेली
फिर डूब गई
इसे शिकायत है कि
किनारों ने इसे धोखा दिया।

मुनि श्री क्षमासागर जी

क्षमा करने से निर्भार हो जाते हैं,
क्षमा मांगने से निर्भय।

मुनि श्री अविचल सागर जी

बरसात आने से पहले बादलों के टुकड़े आ जाते हैं, बिजलियाँ कड़काते हैं, पर पानी नहीं बरसा पाते।
उनमें वेग तो होता है, उपयोगता/सघनता नहीं।
ऐसा वेग किस काम का !

चिंतन

(हिरन की प्रार्थना पर, शेर से उसके बच्चों को बचाने, बंदर एक पेड़ से दूसरे/ तीसरे पर तेजी से छलांग लगाता रहा।
हिरन…पर शेर तो बढ़ता ही जा रहा है ?
बंदर…मेरे efforts में तो कोई कमी नहीं है न !
….सौरभ – नोएडा)

सीखे कहाँ नबाब जू , ऐसी देनी देन;
ज्यों ज्यों कर ऊँचौ कियो, त्यों त्यों नीचे नैन ?
रहीम खान खाना… देनहार कोई और है, देवत है दिन रैन;
लोग भरम मोपै करें, तातै नीचे नैन।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

अपनी
मुश्किलों को,
अपनों के
बीच रख दीजिए !

कुछ
मुश्किलें कम होंगी
और…
कुछ अपने !*

(अरविंद)

* संसार का असली रूप पता लग जायेगा।

आजकल तो अपनों को मुश्किलें बताने पर मुश्किलें और बढ़ जाती हैं …..सुमन

प्रमादी का भाग्य कभी नहीं फलता।
भाग्य भरोसे बैठने वालों को वही वस्तुयें मिलती हैं, जो पुरुषार्थी छोड़ जाते हैं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

स्वस्थ वह है, जो बिना दवाइयों के जीवन जी रहा हो।
इन्द्रिय-भोग दवायें हैं, इच्छाओं को दबाने की,
पर इनसे इच्छाओं की पूर्ती नहीं होती, इस दवा को लगातार लेते रहना पड़ता है।
तो ऐसा व्यक्ति स्वस्थ कैसे माना जायेगा !!

प्रकाश छाबड़ा

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728