याचना…. संकट/दु:ख दूर कर दो।
प्रार्थना…. संकट/दु:ख में स्थिरता रख सकूँ, ऐसी शक्त्ति दो।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

गुरु जी! आप थकते नहीं हैैं ?
गुरु…. थमा हुआ थकता नहीं,
थमे को तो काम करने से ऊर्जा आती है।
भागने वाले को भी थमने पर थकान दूर हो जाती है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

दुनिया का ज्ञान प्राप्त हो गया पर दुनिया से दूर रहने की कला नहीं आयी, तो बुद्धि किस काम की !
बुद्धि कच्चा माल है, विवेक पक्का माल,
बुद्धि की परिपक्व अवस्था ही विवेक है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

घर में गंदगी/धूल दिन-रात आती रहती है, सफाई कई बार।
जीवन में पाप क्रियायें हर समय, उनकी सफाई कम से कम एक बार तो भाव/प्रायश्चितपूर्वक कर लो।
मुनिराज तो बिना पाप क्रियायें किये, 3-3 बार प्रतिक्रमण आदि करते हैं।

चिंतन

विनय को पाने में दान भी सहायक होता है।
कैसे ?
दान से ममकार (मेरा-मेरा) के भाव कम होते हैं तथा पर-उपकार के भाव से हृदय में आर्द्रता/सहृदयता आती है, इनसे विनयशीलता।

नीरज-लंदन

आचरण के बिना “साक्षर” बने रहने में (इसके विपरीत) “राक्षस” बन जाने का ख़तरा भी रहता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

कोरोना काल में बर्तन साफ करते समय महसूस हुआ कि – गंदे बर्तन जब साफ दिखते हैं तो मन को कितना अच्छा लगता है।
ऐसे ही जब दूषित आत्मा साफ होगी तब कैसी आनंद की अनुभूति होगी।

चिंतन

(वो भी ख़ुद करने पर महसूस होता है…सुमन)
(बहुत सही, बर्तन गंदे/ साफ तो रोज़ देखते थे; ये चिंतन तभी आया जब सफाई ख़ुद की।
आत्मा की सफाई भी ख़ुद ही करनी होगी, पढ़ने/ सुनने से नहीं होगी)

(सफाई का तरीका ?…अनिता जी)
1) पाप/ अधर्म, व्यसनों से दूर रह कर
2) सुसंगति/ स्वाध्याय से
3) व्रत/ तप/ ध्यानादि करके

यदि पथ्य का पालन हो तो औषधि की आवश्यकता नहीं,
यदि पथ्य का पालन ना हो तो औषधि का प्रयोजन नहीं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सम्बंध कांच जैसे होना चाहिये –
1. सावधानी जैसे कांच के बर्तनों के साथ रखते हैं
2. पारदर्शिता
3. टूटने पर ताप देकर नया बनाया जा सकता है; सम्बंधों को क्षमा/प्रायश्चित के ताप से नया बनाया जा सकता है।

अमरकंटक प्रवास के दौरान एक युवक भारी घाटा होने से आत्मघात करने जा रहा था।
उसे आचार्य श्री विद्यासागर जी से संबोधन दिलवाया –
आचार्य श्री – “दान करो”
उसकी जेब में 500रुपये थे, उसने पूरे दान कर दिये।
समाज वालों ने नौकरी दी, Partner बनाया।
एक-डेढ़ साल में सब Loan उतर गया, वरना धर्म परिवर्तन के प्रलोभन तक में आ चुका था।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

अच्छाई मोह से बड़ी होती है।
आपके दो बच्चे हों, दोनों से मोह होगा।
यदि एक में अच्छाईयाँ हैं तो मोह बढ़ेगा, दूसरे में नहीं हैं तो कम या समाप्त हो जायेगा।

चिंतन

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