“वक्त पर बोये ज्वार मोती बनें” ।
एक गरीब ज्योतिषी ने विलक्षण मुहूर्त देखा, जिसमें अनाज हवन में डालने पर वे मोती बन जाएंगे। पर घर में ज्वार नहीं थे सो पड़ोसिन से ज्वार मांगने पर उसे कारण भी बता दिया। छत पर हवन मंत्रोच्चारण के साथ शुरू हुआ। पड़ौसिन ने भी अपनी छत पर अपना हवन शुरु कर दिया। मुहूर्त आने पर ज्योतिषी ने ज्वार डालने को स्वाहा बोला, पड़ौसिन ने तुरंत अपने ज्वार डाल दिए और वे मोती बन गए; पर ज्योतिषी की पत्नी ने पूछा ज्वार पूरे डालने हैं या एक-एक मुट्ठी, मुहूर्त निकल गया, मोती तो बने नहीं, ज्वार भी जल गए।
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं – समय पर किया गया काम समय (आत्मा/विशुद्धता) की ओर ले जाता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

वैसे तो सत्य अखंड है पर व्यवहार चलाने में खंडित हो जाता है जैसे सत्य यह है कि रोटी पूर्ण होती है पर माँ खंडित करके परोसती है (होटल में साबुत, ताकि गिन सकें), फ़िर दांत उसके और टुकड़े टुकड़े कर देते हैं, रही सही कसर आंत उसे और महीन ।

मुनि श्री सुधासागर जी

12 जनवरी’07 को दुनिया के सबसे प्रसिद्ध वायलन बजाने वाले Joshua Bell ने अमेरिका में New York के Metro Station पर एक घंटा वायलन बजाया।
7 लोगों ने थोड़ी-थोड़ी देर सुना, 15 लोगों ने कुल 30 डालर डाले।
अगले दिन Bell का प्रोग्राम हुआ जिसकी टिकिट 100 डालर थी।
House full होने के कारण टिकट मिल नहीं रहीं थीं।
प्रश्न ?
1. हम Value किसकी करते हैं ? नाम की, जिसके लिये पैसे खर्च किये हों !
2. हमारी प्राथमिकता क्या है ? Rat Race या आनंद !!

(डॉ.पी.एन.जैन)

गायें शाम को लौटतीं हैं। उस बेला को गोधूलि कहते हैं। वह शुभ मानी जाती है, क्योंकि गायें अपने प्यार को सँजो कर बच्चों से मिलने आती हैं।

पुरुषों को काम से आते समय इन्हीं भावों से घर में घुसना चाहिये। महिलाओं को भी पुरुषों के लौटते ही शिकायतों का सिलसिला शुरू नहीं कर देना चाहिये। पुरुषों को भी बाहर की समस्याओं की चर्चा घरवालों से नहीं करना चाहिये, ताकि वे स्वयं सकारात्मक रह सकें, और घर का वातावरण भी सकारात्मक रहे।

मुनि श्री सुधासागर जी

जिसे दुबारा करने/पाने/देखने/सुनने का मन करे, वह आनंद की क्रिया है।
सन् 1983 में आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित लम्बा विहार करके शाम को शिखर जी पहुंचे, सुबह 5:45 पर पहाड़ की वंदना (27 K.M. की) पर चल दिये। जितने दिन रुके रोज़ वंदना की। एक दिन तो ऊपर की मिट्टी उठाकर केशलोंच करके फिर दूसरी वंदना कर शाम तक वापस, क्योंकि आनंद आ रहा था।

मुनि श्री सुधासागर जी

यह दो प्रकार का है –
1. बाह्य – जो दिखता भी है – वैभव के रूप में।
2. अंतरंग – जो दिखता नहीं, पर अंतरंग वैभव प्रदान करता है; सातिशय/सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि।
इसे कैसे प्राप्त करें ?
धार्मिक अनुष्ठानों को अहोभावों से करके।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

धन की प्राप्ति पुण्य के फल से, धन को सदुपयोग में लगाना तप के फल से।
(इच्छानुरोध से ही सदुपयोग कर पाते हैं, यही तो तप है)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

एक कम्पनी की Board Meeting में Director ने कम्पनी की Growth पर चर्चा ना करके, कम्पनी के Fail होने के कारणों पर चर्चा की।
कहा – बस इन कारणों से कम्पनी को बचा कर रखना है, Growth तो अपने आप होती रहेगी।
जीवन की Growth करनी है तो हमको कमज़ोरियों,बुराइयों पर नज़र रखनी होगी और उनसे बचना होगा।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

सांप के भय से गुरु से गरुडी मंत्र मत पढ़वा लेना, वरना रस्सी ही सांप बन जायेगी।
थोड़ी बीमारी का ज्यादा रोना डॉक्टर से मत करना वरना डॉक्टर Heavy Dose दे देगा, side effects घातक हो जायेंगे तथा बड़ी बीमारी होने पर वे दवायें काम नहीं करेंगी।
कुछ ख़ुद भी तो करो/सहो !!

मुनि श्री सुधासागर जी

बड़े-बड़े संत छोटी-छोटी उम्र में अपना और हजारों का कल्याण करके चले गये (जैसे गुरुवर श्री क्षमासागर जी)। भगवान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति ४२ वर्ष की आयु में हो गयी थी।
हम 80-90 साल की उम्र में कुछ भी सार्थक नहीं कर पाते हैं क्योंकि अधिकतर समय हम बेकार करते रहते हैं।

अंजू-कोटा (चिंतन)

आचार्य श्री विद्यासागर जी आहार देने वाले से कुछ त्याग नहीं कराते। एक वकील ने आहार दिया, जो त्याग करने से डरता था। बाद में
चर्चा के दौरान आचार्य श्री ने समझाया, “वाइटॅमिन ‘आर’, यानि रिश्वत, का त्याग सबसे सरल है।”
वकील ने रिश्वत का त्याग कर दिया।
आचार्य श्री ने कहा, “अब किसी का मन नहीं दुखेगा; सो अहिंसाव्रत हो गया। झूठ नहीं बोलना पड़ेगा। चोरी से भी बच गये। पैसा कम होगा, तो कुशील के भाव नहीं आयेंगे। और परिग्रह की सीमा भी हो गयी।”
वकील बोला, “आपने तो अव्रती को व्रती बना दिया।”

आचार्य श्री विद्यासागर जी

साधु देखते हुये भी देखता नहीं, या उसमें कुछ और देख लेता है, जैसे कोई काम की वस्तु।

सुनते हुये भी सुनता नहीं, या और कुछ ही सुन लेता है। जैसे उसे “पागल” कहा, तो सुनेगा “पा”, “ग”, “ल”, मात्र तीन वर्ण। वर्णों से ही तो शास्त्रों की रचना होती है। गाली तो सुनेगा ही नहीं!

मुनि श्री सुधासागर जी

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728