लुहार सुबह अग्नि को पूजता है ।
बाद में उसी अग्नि को घन से पीटता है ।
कारण ?
सुबह अग्नि एकाकी रहती है, बाद में वह लोहे की संगति में आ जाती है, सो घनों से पिटती है ।
एकाकी आत्मा पूज्य होती है पर कर्मों की संगति में आकर संसार में दुखी/भटकती रहती है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

दृष्टि पलटा दो,
तामस समता हो
और कुछ ना
(तामस और समता, एक दूसरे को पलटाने से, यानि अंधकार में समता रखूं)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

कैसे समता रखूं ?
1. दु:खों में सुख खोजें
2. प्रतिकूलता में अनुकूलता ढ़ूढ़ें
3. बुराई में अच्छाई देखें
4. विपत्ति में संपत्ति देखें

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

भय से आयु कम होती है, 1घंटा भय की अवस्था में रहने से कहते हैं 2½घंटा उम्र कम हो जाती है।
अपराधियों की तथा चिड़ियों की उम्र कम होती है।
पाप करने को मना करने का एक कारण यह भी है कि पाप करते समय भय/करने के बाद भय।

मुनि श्री सुधासागर जी

या तो ख़ुद संयम/नियम ले लो, नहीं ले सकते तो संयमी की संगति कर लो।
लक्ष्मण को क्रोध बहुत आता था, शांत राम की संगति ने उनका नुकसान नहीं होने दिया।
यदि दोनों संभव नहीं हों तो परिवारजन एक-एक दिन के नियम ले लें।
राजा श्रेणिक ख़ुद संयम नहीं ले पाते थे सो संयमी चेलना रानी की संगति से भविष्य के तीर्थंकर बनेंगे।
पूज्य न बन सको, तो पूज्य की पूजा करो।

मुनि श्री सुधासागर जी

33नं. वाला पास, पर 32नं. वाला फेल;
या कहें 33नं. वाला 67नं. से तथा 32नं. वाला 68नं. से फेल है। पर 32नं. लाने का साहस सो 32नं. वाले के पास भी है !
पास/फेल में ज्यादा फ़र्क नहीं होता।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

अच्छी/शुभ क्रियायें यदि बुरे भाव से भी की जायें तो भी फायदेमंद रहतीं हैं क्योंकि वे अच्छी हैं सो अच्छा ही करेंगी।
दु:ख पड़ने पर वे याद आती हैं/सुकुन देती हैं।

मुनि श्री सुधासागर जी

रस्सी बुनने वाला ज़िंदगी भर रस्सी बुनता रहता है पर रस्सी का कभी अंत/छोर नहीं आता, क्योंकि वह लगातार जूट के टुकड़े लगाता जाता है।
हमारे कर्मों का सिलसिला भी ऐसा ही है – Non Ending, क्योंकि हम भी कर्म जोड़ते चले जाते हैं।

चिंतन

शांति के ऊपर पेंटिंग प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार उस पेंटिंग को मिला जिसमें तुफान, बाढ़, बिजली कड़क रही थी, एक ठूंठ पेड़ पर बैठी चिड़िया गाना गा रही थी।
कारण ?
“विपरीतताओं में शांति-संदेश”

(डॉ.पी.एन.जैन)

जुए में युधिष्ठिर बदनाम हुए जबकि जुए का खिलाड़ी तो शकुनी था, ऐसा क्यों ?
शकुनी तो जीता था, उसको प्रसिद्ध करते तो लोग जुआ खेलने को प्रेरित होते। युधिष्ठिर अपना राज्य/ परिवार/ सब कुछ जुए में हारे थे, इसलिये उनका उदाहरण दिया जाता है।

मुनि सुधासागर जी

कल्याण की अपेक्षा, व्यक्तियों के 4 भेद होते हैं –
1. स्व-कल्याणी : जो सिर्फ अपने कल्याण की ही सोचते हैं।
2. पर-कल्याणी : जो सिर्फ दूसरों के कल्याण की ही सोचते हैं।
3. पर-स्व-कल्याणी : जो सिर्फ दूसरों के कल्याण में अपना कल्याण मानते हैं।
4. स्व-पर-कल्याणी : जो अपना कल्याण करके फिर दूसरों का कल्याण करते हैं जैसे भगवान महावीर ।

चिंतन

कुछ सुनने पर बुरा ना लगना, ना ही किसी को बुरा कहना।
1. साधु के लिये – मन में होय सो वचन उचरिए, वचन होए सो काय से करिये।
2. गृहस्थ के लिए – मन में होय सो मन में रखिए, वचन होय सो काय से न करिए।

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

जब तक प्रश्न, तब तक उत्तर की भूख बनी रहती है ।
भगवान प्रश्नों से परे होते हैं ।
कुछ लोगों के मन में प्रश्नों का प्रश्न ही नहीं होता/उठता ।
बिना प्रश्न वाला या तो पूर्ण ज्ञानी होता है जैसे भगवान, या पूर्ण अज्ञानी ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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