हम लक्ष्मी के स्वागत में सजावट करते हैं/दीप जलाते हैं/पटाखे चलाते हैं(पर भूल जाते हैं-प्रदूषण को,अहिंसा को)
दीपावली दो महान कार्यों के लिये मनायी जाती है-
1) महावीर भगवान ने सबसे बड़ा वैभव (समवसरण)छोड़ा।
2) श्री राम ने लंका जीत कर वहाँ का राज्य छोड़ा।
याने-हम लक्ष्मी को बुलाते हैं ताकि हमारा संसार बढ़े,
पर हमारे भगवानों ने लक्ष्मी को छोड़ा और पाया मोक्ष-लक्ष्मी को।
आप क्या चाहते हो?
संसार या संसार से मुक्ति??
चिंतन
आज के समय में धर्म की प्रासंगिकता कितनी है ?
दु:ख में धर्म की ज़रूरत ज्यादा होती है/महत्त्व ज्यादा महसूस होता है।
पंचमकाल/कलयुग में दु:ख बढ़ते ही जा रहे हैं, सो धर्म की प्रासंगिकता बढ़ रही है ।
चिंतन
धर्म में ध्यान आवश्यक नहीं, सहायक है ।
ध्यान तो जानवर भी कर लेते हैं ।
धर्म तो आत्मज्ञान से होता है/आवश्यक है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
नल बंद क्यों करें ! जब पानी आना बंद होगा तब नल अपने आप बंद हो जायेगा ।
हाँ ! जब ज़मीन में पानी समाप्त हो जायेगा तब सब कुछ अपने आप बंद हो जायेगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
एक व्यक्ति का चयन होना था ।
उसे भोज पर बुलाया गया, सूप आया, मालिक नमक डाल कर पीने लगा, उसने भी नमक मिलाकर पी लिया ।
मालिक ने उसे फ़ेल कर दिया ।
कारण ?
बिना परखे निर्णय लेना ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(Manju)
सम्बंध शुरु होते हैं उत्साह के साथ पर समय के साथ नीरस होते जाते हैं ।
पढ़ाई में भी यही स्थिति, अन्य कामों में भी ।
यदि Final Exam को ध्यान में/Goal बनाकर पढ़ाई शुरु/आगे भी की जाय तो उत्साह बना रहता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मंदिर में/गुरु के दर्शन करते समय जूते ऐसी जगह उतारें जहाँ भगवान/गुरु की नज़र न पड़े ।
मुनि श्री सुधासागर जी
पाप तो पहले भी होते थे; आज भी होते हैं।
फ़र्क ?
पहले सिर्फ़ बड़े पाप करते थे; आज वही पाप छोटे भी करने लगे हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मौसम के अनुसार हम पंखे की Speed को नियंत्रित करते रहते हैं।
क्रोधादि को क्यों नहीं करते ?
जबकि ताकतवरों के सामने/ ग्राहकों के सामने तो बहुत विनयशील हो जाते हैं !
चिंतन
मन बाहरी, इसीलिये बाहरी वस्तुओं से प्रभावित हो जाता है।
चित्त अंतरंग, संस्कार चित्त पर ही होते हैं, यह Hard Disk है, भाव चित्त से ही आते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मनुष्य जो पाता है,
सो भाता नहीं,
इसलिये साता आता नहीं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
1. समभाव – सब जीवों पर ।
2. ममभाव – कम करें ।
3. प्राणायाम – शरीर शुद्धि से भाव शुद्धि भी ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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