कड़क सर्दी में आचार्य श्री विद्यासागर जी सहजता से सारी क्रियायें करते हैं ।
पूछने पर श्री धवला जी की गाथा सुनाते हैं – “वेदना परिणाम: प्रतिक्रिया” यानि वेदना पर ध्यान देने से वेदना बढ़ती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बड़े लोगों में प्राय: अभिमान देखा जाता है, फिर भी उनका वैभव/नाम कम क्यों नहीं होता ?
एक बार बड़ी कमाई (पुण्य) कर लेने पर छोटे छोटे नुकसानों का प्रभाव दिखता नहीं/ प्रभावित नहीं करता ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
पैसा मानव जीवन की सबसे ख़राब खोज है,
पर मानव के चरित्र को परखने की सबसे विश्वसनीय सामग्री ।
(अनुपम चौधरी)
वृद्धावस्था में शरीर असुंदर क्यों हो जाता है ?
ताकि अब तो शारीरिक आकर्षण छोड़ कर आत्मा की ओर आकर्षित होना शुरु करो ।
बीमारियों का घर क्यों बन जाता है ?
ताकि शरीर के प्रति वैराग्य जगे, इस पर्याय से छूटते समय दु:ख ना हो ।
चिंतन
भगवान, धर्म गुरु, शास्त्र, कुल, जाति, देश सब सच्चे चाहिये, भक्त (मैं)?
कुंडली तो दोनों की समान होनी चाहिये न!
मुनि श्री सुधासागर जी
आज के दिन दो महान ईमानदार व्यक्तियों के जन्मदिन के उपलक्ष में ….
(Pranshi Jain)
संस्मरण ….
गणित की कक्षा में गणित की पुस्तक पढ़ने पर शिक्षक पीटते थे – “गणित पढ़ा नहीं जाता, उसका अभ्यास किया जाता है/ Problem solve की जाती हैं ।”
गौरव जैन-भोपाल
(धर्म और Moral Value भी)
सबसे बड़ा अंधकार – मूर्छा
आचार्य महाप्रज्ञ जी
(इसका प्रतिकार ज्ञान ।
बाहर तो बहुत कृत्रिम प्रकाश बढ़ रहा है पर अंदर का अंधकार भी उसी अनुपात में बढ़ा है ।
अधर्म का प्रतिकार भी धर्म से ही संभव है)
उस एक के लिये बहुत दु:खी होते हैं, जो हजारों प्रार्थनाओं के बाद भी नहीं मिलता।
पर उन हजारों से सुखी नहीं होते, जो एक भी प्रार्थना के बिना हमको मिला है।
सड़क लगातार सीधी नहीं बनी रहती, हलके/ खतरनाक मोड़/ चढ़ाई भी आती रहती है, यदि धैर्य तथा सावधानी पूर्वक चलते रहे तो मंज़िल पर अवश्य पहुँच जाते हैं ।
भाग्यशाली वह नहीं जिसके पुण्य का उदय चल रहा है, बल्कि भाग्यशाली वह है जो पुण्य के उदय में पुण्य कर रहा है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
न्यायालय – जहाँ एक अपराध भी नज़र अंदाज़ ना हो ।
जिनालय – जहाँ एक अपराध पर भी नज़र ना पड़े ।
पार्श्वनाथ भगवान पर जब उपसर्ग हुआ तो उन पर छत्र लगाने सबसे पुण्यहीन आये, जो पिछले जन्म में सांप थे (सांप इतना पुण्यहीन होता है कि उसे देखते ही, प्राय: लोग मारने दौड़ते हैं) |
मुनि श्री सुधासागर जी
जब तक अपने को शरीर मानते रहेंगे, संसारियों से सम्बंध बने रहेंगे, प्रगाढ़ होते रहेंगे ।
जब आत्मा मानने लगोगे तब परमात्मा से… ।
चिंतन
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