आज का दिन क्षमा का है ।
धर्म की शुरूआत क्षमा से ही होती है –
सब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें ।
शुभकामनायें कि हम सब यह पर्व पूरी क्षमता और उत्साह से मनायें ।
जिन-जिन वस्तुओं/ सुविधाओं की कमी में श्रावक दु:खी होता है,
गुरु उन-उन के अभाव में सुखी रहकर दिखाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
जलाशय के किनारे बड़े पेड़ भी सूखने लगते हैं ।
(परिग्रही आसपास वालों को भी पनपने नहीं देते)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
तपस्वी का रूप मंगलकारी होता है और यदि सुंदरता भी हो तो सोने में सुहागा जैसे आचार्य श्री विद्यासागर जी का ।
शरीर को समय पर उचित भोजन देना अहिंसा है,
जैसे किसान असाढ़ की बरसात में बुवाई करने से नहीं चूकता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
सामान्यत: घर में कचरा दिखायी नहीं देता है पर झाड़ू लगाने पर दिखने लगता है ।
ऐसे ही, आत्मनिरीक्षण करने पर दोष दिखने लगते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(मंजू)
बहुत दिनों से आपके घर पर किसी ने कब्ज़ा कर रखा हो तो घर छोड़ते समय तोड़फोड़ करके जाता है।
ऐसे ही कर्म जब आत्मा से निकलते हैं तो दु:खी करके तो जायेंगे ही।
पर हमको खुश होना चाहिये कि पिंड तो छूटा ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पाप जिसे पापी चाहता हो,
बुरी वस्तु जिसे बुरा आदमी चाहता हो ।
साधु ऐसी वस्तुयें रखते ही नहीं जिस पर असंयमी की नियत बिगड़े ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
क्या 5 छिद्र वाले घड़े में पानी भरा जा सकता है?
हाँ, यदि उसे पानी में डुबोये रखा जाये तो।
5 इन्द्रियाँ, जीवन रूपी घड़े के छिद्र हैं,
फिर भी जीवन भरा रह सकता है यदि उसे भक्त्ति में सरोबार रखा जाय तो।
(श्रीमति शर्मा)
जब आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से एक लंगोटी पहनने के लिये कहा तो उन्होंने दुर्योधन का हवाला देते हुऐ बताया – उसने अपनी माँ का कहना नहीं माना था सो उसका हश्र देखा!
साधु को जिनवाणी माँ का कहना मानना चाहिये या कषायीओं (कषाय करने वाले गृहस्थ) का!!
मुनि श्री सुधासागर जी
श्रमण भोगों को निष्परिग्रह-भाव से ग्रहण करते हैं, श्रावक परिग्रह-भाव से,
श्रमण को बढ़िया आहार भी रसना इंद्रिय को नियंत्रण करने का अभ्यास कराता है, श्रावक को अच्छा आहार हो या बुरा, सब रसना इंद्रिय को निमंत्रण का अभ्यास कराते हैं ।
मुनि श्री महासागर जी
मलाई कहाँ ?
अशांत दूध में, ना ।
प्रशांत बनो ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
रावण लंका में सुरक्षित था, राम से ज्यादा बलशाली सेना फिर भी राम क्यों जीते ?
क्योंकि रावण किसी की मानता नहीं था, अपने दादा/नाना तक की नहीं ।
राम ने सबकी, धोबी तक की बात मानी ।
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