आज के समय में धर्म की प्रासंगिकता कितनी है ?

दु:ख में धर्म की ज़रूरत ज्यादा होती है/महत्त्व ज्यादा महसूस होता है।
पंचमकाल/कलयुग में दु:ख बढ़ते ही जा रहे हैं, सो धर्म की प्रासंगिकता बढ़ रही है ।

चिंतन

धर्म में ध्यान आवश्यक नहीं, सहायक है ।
ध्यान तो जानवर भी कर लेते हैं ।
धर्म तो आत्मज्ञान से होता है/आवश्यक है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

नल बंद क्यों करें ! जब पानी आना बंद होगा तब नल अपने आप बंद हो जायेगा ।
हाँ ! जब ज़मीन में पानी समाप्त हो जायेगा तब सब कुछ अपने आप बंद हो जायेगा।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

एक व्यक्ति का चयन होना था ।
उसे भोज पर बुलाया गया, सूप आया, मालिक नमक डाल कर पीने लगा, उसने भी नमक मिलाकर पी लिया ।
मालिक ने उसे फ़ेल कर दिया ।
कारण ?
बिना परखे निर्णय लेना ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

सम्बंध शुरु होते हैं उत्साह के साथ पर समय के साथ नीरस होते जाते हैं ।
पढ़ाई में भी यही स्थिति, अन्य कामों में भी ।
यदि Final Exam को ध्यान में/Goal बनाकर पढ़ाई शुरु/आगे भी की जाय तो उत्साह बना रहता है ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

मौसम के अनुसार हम पंखे की Speed को नियंत्रित करते रहते हैं।
क्रोधादि को क्यों नहीं करते ?
जबकि ताकतवरों के सामने/ ग्राहकों के सामने तो बहुत विनयशील हो जाते हैं !

चिंतन

मन बाहरी, इसीलिये बाहरी वस्तुओं से प्रभावित हो जाता है।
चित्त अंतरंग, संस्कार चित्त पर ही होते हैं, यह Hard Disk है, भाव चित्त से ही आते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

मन निषेध के प्रति आकर्षित होता है, यदि निषेध दूसरे के द्वारा आरोपित किया जाये तो।
खुद के द्वारा निषेध लगाने पर मन उधर नहीं जाता।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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