धर्म क्रियात्मक यानि करना, जिसके करने से लोग धर्मीं कहें, आचार धर्म है ।
अध्यात्म विचारात्मक ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कील वहीं ठोको, जहाँ अंदर चली जाए।
पत्थर पर ठोकोगे, तो वापस आकर तुम्हें ही घायल करेगी।
मुनि श्री अविचलसागर जी
पूर्ण सत्य तो भगवान ही जानते/कह सकते हैं ।
संसारी/संसार चलाने के लिये असत्य पर भी विश्वास करता है जैसे ज़हर से बनी दवा बीमारी को ठीक करती है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर;
आगे तीतर, पीछे तीतर, बोल कितने तीतर ?
तीन ।
नाम ?
भूत, वर्तमान, भविष्य ।
भूत के आगे वर्तमान तथा भविष्य रहता है, भविष्य के पीछे वर्तमान तथा भूत, वर्तमान के पीछे भूत तथा आगे भविष्य रहता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
जिनका स्वाध्याय/धर्म में मन लगता है, उनकी चिंता नहीं/चिंता करने की ज़रूरत भी नहीं ।
जिनका मन नहीं लगता, उनकी चिंता करने से लाभ नहीं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
परायों में अपनों को ढ़ूंढ़ना कठिन काम,
अपनों में* अपने को ढ़ूंढ़ना और कठिन,
अपने में अपने-आपको ढ़ूंढ़ना सबसे कठिन, पर सबसे उपयोगी भी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(* अपनों में परायों को ढ़ूँढ़ना भी बहुत कठिन )
आध्यात्म सिर है, धर्म शरीर ।
मुनि श्री सुधासागर जी
किसी भी कार्य सिद्धि के लिये अनुकूल वातावरण बहुत महत्वपूर्ण होता है ।
और उस वातावरण को बनाये रखने के लिये संयम आवश्यक है ।
मुनि श्री समयसागर जी
“M” और “W” एक दूसरे से उल्टे होते हुये भी एक दूसरे के पूरक हैं ।
“M” और “W” में तीन दिशाओं में तो Boundaries हैं, पर चौथी दिशा जो खुली हुई है, दोनों के मिलने पर Complete/ चार-दीवारी में सुरक्षित और संयमित हो जाते हैं ।
चिंतन
संस्कार मातृभाषा में क्यों ?
माँ से जो सीखा, उस भाषा को हेय दृष्टि से देखने लगे, तो माँ को भी उसी दृष्टि से देखने लगते हैं, तब उनके दिये संस्कारों को भी उसी तरह हेय देखेंगे, तब ग्रहण कैसे करेंगे ?
उनके प्रति आदरभाव कैसे रहेगा ?
यही अंग्रेजी का दोष है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरु और समुद्र दोनों ही गहरे हैं,
पर दोनों की गहराई में एक फ़र्क है….
समुद्र की गहराई में इंसान डूब जाता है,
और
गुरु की गहराई में इंसान तर जाता है ।
(मंजू)
सही प्रशंसा व्यक्ति का हौसला बढ़ाती है,
और….
अधिक प्रशंसा व्यक्ति को लापरवाह ।
(सुरेश)
कुत्ते की दुम का स्वभाव टेड़ा रहना है, यदि सीधी हो जाये तो कुत्ता पागल हो जाता है ।
आपको क्या स्वीकार है ?
टेड़ी पूँछ या पागल कुत्ता, जो अपने लिये तथा आपके लिये भी घातक होगा !
मुनि श्री अविचल सागर जी
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