एकता पुणे
सैना के पुल पर चलते समय, उनके मार्च की लय तोड़ दी जाती है । वरना मज़बूत पुल के भी टूटने का अंदेशा रहता है ।
सोचें ! यदि सामुहिक प्रार्थना एक साथ/ एक लय में की जाये तो उसमें कितनी ऊर्जा पैदा होगी !
चिंतन
वस्तु के स्वभाव के साथ हस्तक्षेप नहीं करना, अहिंसा है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
(जैसे National Forest में शीशम आदि जैसे मूल्यवान पेड़ों को भी उठाया नहीं जाता है)
वेद बिना संवेदना के साथ पढ़ने से सिर्फ अपनी वेदना समझ आयेगी ।
जिसके अंदर संवेदना है उसे वेद का ज्ञान तो हो ही जायेगा और सबकी वेदना भी समझ आयेगी ।
(यश – बड़वानी के प्रश्न का उत्तर)… मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दीपक को जलना है, हवा को चलना है, दीपक बुझता है ।
दोष हवा का नहींं, दोनों का अपना अपना स्वभाव है ।
दीपक क्या करे ?
बस ! दीपक अपने आसपास चिमनी लगा ले, वही हवा उसे प्रकाशित बने रहने के लिये Oxygen भी देगी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
संसार कितना बचा, यह तय होता है कि आप संसार में कितना Involve हैं/ धंसे हुए हैं ।
चिंतन
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यदि हवाएं मौसम की गर्मी समाप्त कर सकती हैं, तो..यकीन कीजिए,
प्रार्थना भी मुसीबत के पल ख़त्म कर सकती है ।
हम सभी की खुशियों के लिए प्रार्थना करें ।
(अनुपम चौधरी)
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एक मुकाम जिंदगी में ऐसा भी आता है,
“क्या भूलना है” बस यही याद रह जाता है ।
(सुरेश)
और यह जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण मुकाम होता है,
मेरी जिंदगी में आ चुका है,
भूलने में प्रयत्नरत भी हूँ ।
सेवा से तो पुण्य और आनंद दोनों मिलते हैं,
पर कुपात्र की करने से दुर्गुण और सुपात्र की से सदगुण आने की संभावना रहती है ।
चिंतन
प्रभु के दरबार में कहते हो झोली भर दो,
जबकि कहना चाहिये – झोली छुड़ा दो ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
चाहे कितनी भी भलाई का काम कर लो…
उस भलाई की उम्र,
सिर्फ….!
अगली गलती होने तक ही है…!!
(सुरेश)
जरा* न चाहूँ,
अजर** बनूँ,
नजर*** चाहूँ ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* रोग/थोड़ा भी
** निरोगी
*** गुरुकी/सम्यग्दृष्टि
कक्षा में एक बच्चे की घड़ी चोरी हो गयी । शिक्षक ने सब बच्चों की जेबें टटोलीं पर उससे पहले सब बच्चों की आंखें बंद रखने का आदेश दिया ।
एक बच्चे की जेब में घड़ी मिल गयी पर शिक्षक ने उस बच्चे को डाटा नहीं/ ना ही उसका नाम किसी को बताया ।
बड़े होने पर उस छात्र ने अपने शिक्षक से पूछा, तो जबाब था –
” उस घटना के लिए मैनें भी अपनी आंखें बंद कर ली थीं ”
अपनी इज्जत बची देखकर, वह बच्चा भी बदल गया और बहुत बड़ा शिक्षक बन कर, उसी ने यह संस्मरण सुनाया ।
(डॉ.पी.एन.जैन)
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