आत्मा को भार* नहीं, आभार** मानो ।

* भार मानने वाले आत्मघात तक कर लेते हैं ।
** कितना उपकार कि आत्मा हमें मोक्ष-मार्ग पर लगाने में निमित्त है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

जग प्रशंसा करे तो गुण, ख़ुद को बताना पड़े तो अवगुण ।
अवगुणीं तुम्हारे गुणों को स्वीकार नहीं कर पायेंगे;
गुणीं पचा नहीं पायेंगे ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

भगवान भारत में ही क्यों ?
इस धर्म/संस्कृति की फसल के लिये ये ही वातावरण अनुकूल है ।
जैसे चाय के लिये आसाम, सेव के लिये कश्मीर ।
बाहर का वातावरण संसार बढ़ाने के लिये या कहें संसार किसी भी वातावरण में फलफूल सकता है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

ट्रेन में 2 यात्रियों में झगड़ा मारपीट तक पहुंच गया ।
एक खिड़की बंद करता उसे सर्दी लग रही थी, दूसरा खोल देता क्योंकि उसे गर्मी ।
TTE को बुला लिया गया ।
TTE ने आकर देखा खिड़की में कांच ही नहीं था ।
झगड़ा सर्दी/गर्मी का नहीं, अहम् का था ।

(श्रीमति शर्मा)

विपरीतता प्रकृति का नियम है ।
प्रतिकूल वातावरण में अनुकूल की साधना ही सच्ची साधना है ।
हीरा कोयले की खान में ही ।
शंख/गाय किसी भी रंग का खाकर सफेद रंग का शरीर/दूध बनाते हैं ।

मुनि श्री महासागर जी

और यह साधना सम्भव होती है …गुरु कृपा से …
गुरु ?
माँ ही प्रथम गुरु है,
और
गुरु ही पूर्ण माँ … गुरु पूर्ण माँ

Nazim Hikmat the great Turk poet (Faiz was one of his admirers) once asked his friend Abidin Dino (Turkish artist and a well-known painter) to draw picture of happiness. Since then “Can you paint the picture of happiness for me, Abidin?” is a well-known phrase for Turks. This painting is famous. The whole family is cramped up on a broken bed under a leaked roof in a shabby room…

(Dr.P.N.Jain)

दही के बर्तन में बिना जामुन के दूध ऐसा जम जाता है कि जमा (जमाना) उल्टा कर दो तो भी ना गिरे ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

बिना संयम के काले बाल वालों पर भरोसा मत करना ;
Army area में Civilian का जाना वर्जित होता है ।
श्रावकों की सुनो मत/मानो मत, श्रमण को अपनी बात सुनानी चाहिये/श्रावकों से मनवानी चाहिये ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

“B” से “Birth”
और
“D” से “Death”
इन दोनों में से एक भी हमारे हाथ में नहीं है,
परन्तु
“B” और “D” के बीच में होता है “C”
“C” से “Choice”… ये हमारे हाथ में है,
जीवन कैसे जीना है, ये हमारे हाथ में है ।
“वर्तमान” को आनंद से जीओ,
“भूतकाल” को भूल जाओ,
“भविष्य”को कुदरत पर छोड़ दो ।

(सुरेश)

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