ध्यान
ध्यान चारित्र गुण की निर्मल पर्याय है, जितने अंशों में चारित्र की निर्मलता है उतने अंशों में ध्यान है ।
इसे रत्नमयी कहा है ।
जब निर्मल ज्ञान स्वयं में स्थिर हो जाता है, वह ध्यान है ।
श्री बृहज्जिनोपदेश – 141
ध्यान चारित्र गुण की निर्मल पर्याय है, जितने अंशों में चारित्र की निर्मलता है उतने अंशों में ध्यान है ।
इसे रत्नमयी कहा है ।
जब निर्मल ज्ञान स्वयं में स्थिर हो जाता है, वह ध्यान है ।
श्री बृहज्जिनोपदेश – 141