निद्यत्ति / निकाचित
निद्यत्ति/ निकाचित कर्मों की तरह, निद्यत्ति/ निकाचित करण भी होते हैं। जिनबिम्ब दर्शन तथा आठवें गुणस्थान की विशुद्धि इन कर्मों को समाप्त करने में कारणभूत होते हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
निद्यत्ति/ निकाचित कर्मों की तरह, निद्यत्ति/ निकाचित करण भी होते हैं। जिनबिम्ब दर्शन तथा आठवें गुणस्थान की विशुद्धि इन कर्मों को समाप्त करने में कारणभूत होते हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
3 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने निघत्ति एवं निकाचित के उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘निद्यत्ति/ निकाचित करण’ ka kya meaning hai, please ?
कार्य की पूर्णता में कारणभूत = करण।
निद्यत्ति/ निकाचितपना समाप्त करने में कारणभूत = निद्यत्ति/ निकाचित करण।