निद्यत्ति / निकाचित

निद्यत्ति/ निकाचित कर्मों की तरह, निद्यत्ति/ निकाचित करण भी होते हैं। जिनबिम्ब दर्शन तथा आठवें गुणस्थान की विशुद्धि इन कर्मों को समाप्त करने में कारणभूत होते हैं।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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3 Responses

  1. मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने निघत्ति एवं निकाचित के उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।

  2. ‘निद्यत्ति/ निकाचित करण’ ka kya meaning hai, please ?

    1. कार्य की पूर्णता में कारणभूत = करण।
      निद्यत्ति/ निकाचितपना समाप्त करने में कारणभूत = निद्यत्ति/ निकाचित करण।

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