अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान सर्वघाती तो संज्वलन क्यों नहीं ? वह भी तो यथाख्यात चारित्र नहीं होने देती है ?
आत्मा का अनुभव तीव्र कषाओं में संभव नहीं (जैसे उथलपुथल वाले पानी में नीचे का दिखाई नहीं देता), संज्वलन में ही संभव है ।
बाई जी
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