Category: चिंतन

कर्मोदय

कर्मोदय… बिल से निकला हुआ सांप है; छेड़ा, तो डसा ! शरीर पर से निकल रहा हो, तो भी शांति से निकलने देना, वरना लेने

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बीरबल की खिचड़ी

हमारी खिचड़ी* इसलिये नहीं पक पा रही है क्योंकि धर्म/गुरुओं का ताप दूर से/यदाकदा दे रहे हैं । चिंतन * आत्मोन्नति/ धर्म की

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दोष

दोष दूसरे बतायें तो Sorry से काम चल जायेगा; ख़ुद महसूस करें तो प्रायश्चित लें । चिंतन

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छवि

उस छवि की ही चिंता की जाती है, जिसकी छाया पड़ती है, जैसे मकान, कार, शरीर आदि । आत्मा की छाया पड़़ती नहीं , सो

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यात्रा

संसार तथा परमार्थ की यात्रायें, सूक्ष्म से शुरु होकर अंत भी सूक्ष्म पर ही समाप्त होती हैं । जन्म/मृत्यु (एक cell से राख), सूक्ष्म निगोदिया

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ज्ञान / विज्ञान

ज्ञान पढ़ा/बोला जाता है, Theory है; विज्ञान ज्ञान के साथ साथ किया/देखा जाता है, Practical भी है । चिंतन

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ज्ञात / अज्ञात

पंडित लोग प्राय: अज्ञात/अंदर के विषयों की चर्चा करते हैं जैसे आत्मादि, जबकि साधुजन ज्ञात/बाह्य क्रियाओं की । क्योंकि पंडित प्राय: आचरणों से दूर रहते

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विरोध

गतिमान का विरोध ही नहीं, अंतर-विरोध भी होता है । पर दृढ़त/संकल्प इन विरोधों को Stepping Stone बनाकर अपनी प्रगति को बढ़ा देते हैं। जैसे

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सज़ावट

दीपावली के अवसर पर घरों के बाहर ख़ूब सजावटें की गयीं, घरों के अंदर बस एक/ दो कागज़ के फूलों की माला ! बाहर की

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मंगल आशीष

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