Category: चिंतन

आदत

अच्छी आदत की एक बुरी आदत भी है…. देर से आदत पड़ती है और छूटने की जल्दी मचाती है। चिंतन

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धर्म का कार्य

धर्म संकटों को समाप्त नहीं करता, उन्हें सहने की शक्ति देता है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी अपने पापों को स्वीकार कराता है/ पापों का

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माध्यस्थ मार्ग

कुण्डलपुर यात्रा में टैक्सी ड्राइवर माध्यस्थ Speed से चल रहा था (80/90 k.m./h)। कारण ? पेट्रोल बचाकर इनाम पाया (1 हजार रुपये का)। हम भी

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परिवार / धर्म

परिवार कमियों के साथ स्वीकारा जाता है। धर्म में कमियों को सुधारा जाता है। चिंतन

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मौन

मौन में बात बंद करना नहीं होता है, बस दूसरों की जगह अपने आप से बात करनी होती है। चिंतन

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संगति / पुरुषार्थ

कुसंगति के प्रभाव से बचे रहने के लिये बहुत पुरुषार्थ करना होता है। लेकिन सुसंगति के बावजूद व्यक्ति बिगड़ जाए तो पुरुषार्थहीन ही कहलायेगा। ऐसे

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धर्म

धर्म को कैसे पहचानें/ जानें ? जैसे आत्मा को पहचानते/ जानते हैं – शरीर के माध्यम से। ऐसे ही धर्म को धार्मिक क्रियाओं के माध्यम

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प्रतिबिम्ब

पटना के एक सप्ताह के प्रोग्राम से लौटने पर एक स्वाध्यायी ने कहा → यहाँ तो सूना कर गये (स्वाध्याय बंद हो गया था)। जबाब

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कर्म / धर्म

कर्म और धर्म कभी विपरीत नहीं होते। जैसे किये जाते हैं वैसे ही फलित होते हैं। मुनि श्री अजितसागर जी (इनके एक से स्वभाव हैं,

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इच्छा

आग पर तरल पदार्थ डालने से आग बुझ जाती है। पर इच्छा ऐसी आग है उसमें घी जैसा बहुमूल्य तरल भी (इच्छापूर्ति के लिये) डाला

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मंगल आशीष

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