Category: अगला-कदम
अगारी
उत्कृष्ट प्रतिमा वालों (श्रावक – जघन्य-1 से 6 प्रतिमा, मध्यम-7 से 9, उत्कृष्ट-10-11 प्रतिमा वाले) को भी अगारी कहा, क्योंकि घर व परिग्रह का पूर्ण
विषय-भोग
केवल श्रद्धान से विषयों के प्रति झुकाव रुकता नहीं। सौधर्म इन्द्र क्षायिक सम्यग्दृष्टि होते हुये, जौंक की तरह विषयों को छोड़ता नहीं है। आचार्य श्री
हिंसा
प्रवृत्ति तो 1 से 6 गुणस्थानों में है, तो हिंसा ? पहले गुणस्थान वाला भी जब प्रवृत्ति में सावधानी बरतेगा, तब हिंसा का दोष नहीं
अज्ञान / अनंतानुबंधी
अज्ञान सिर्फ मिथ्यात्व से ही नहीं, अनंतानुबंधी से भी होता है जैसे दूसरे गुणस्थान का अज्ञान जहाँ मिथ्यात्व का अनुदय है। अप्रत्याख्यान तथा प्रत्याख्यान सर्वघाती
पुदगल-परावर्तन
नोकर्म-बंध के हेतु – शरीर/प्रियजन। कर्म-बंध तो भीतर चल रहा है। नोकर्म-बंध टूटे तो कर्म-बंध टूटे, कर्म-बंध टूटे तो नोकर्म-बंध छूटे। इस तरह पुदगल-परावर्तन दो
कर्मों का प्रभाव
निमित्तों और नोकर्मों से बचने पर, कर्मों का प्रभाव कम हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सामायिक
रोजाना दिन में 3-3 बार एक सी बातों को दोहराना, क्योंकि राग ज्यादा है । पर पर्याय को विषय न बनायें क्योंकि पर्याय तो अस्थिर
महास्कंध
सब प्रकार के स्कंधों का समूह, महास्कंध कहलाता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
ईर्यापथ आश्रव
ईर्या = गमन = आना जाना कर्मों का (आत्म प्रदेशों से) क्योंकि आत्मा में चिकनापन (कषाय) नहीं है। पथ = रास्ता, पर शुभ-कर्मों और नोकर्मों
संसारी/मुक्त जीव
“संसारिण: मुक्ता: च” – तत्त्वार्थ-सूत्र – 2/10 इस सूत्र में “संसारी” पहले लिया, हालाँकि “मुक्त” ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, कारण – 1. मुक्त संसार से ही
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