Category: अगला-कदम
उपशम/क्षायिक सम्यग्दर्शन
दोनों सम्यग्दर्शनों में 7 प्रकृतियों का उदय नहीं है पर विशुद्धता में बहुत फर्क है । क्षायिक सम्यग्दृष्टि 3 या 4 भवों में मोक्ष जबकि
पाप / पुण्य
पाप-कर्म भी पुण्य के उदय में ही होते हैं। जैसे 7वें नरक जाने के लिये, वज्रवृषभ-नाराच-संहनन चाहिये, जो बड़े पुण्य से ही मिलता है। मुनि
उपादान / निमित्त
साधारण/आम लोग निमित्त के अनुसार परिणमन करते हैं। महावीर भगवान ने कहा – उपादान की त्रैकालिक शक्त्ति पहचानो, उसे अभ्यास और विशुद्धता बढ़ा कर ऐसा
अगुरुलघु
अगुरुलघु – 1. सामान्य गुण – जीव तथा अजीव में, ख़ुद के गुण कम न हों, अन्य के गुण आयें नहीं। 2. गोत्र कर्म के
मद
सम्यग्दर्शन में मलिनता युद्ध/हिंसा से नहीं, बल्कि मद से आती है। (आचार्य समंतभद्र स्वामी) मुनि श्री सुधासागर जी
सीमा
महाभारत की कथा हैः शिशुपाल के जन्म पर भविष्यवाणी हुई थी कि कृष्ण के हाथों उसका वध होगा। उसकी माता के आग्रह पर कृष्ण ने
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
औपशमिक सम्यग्दर्शन होने पर मिथ्यात्व की तीनों प्रकृतियां सत्ता में बहुत समय तक रहती हैं। भावों में शुद्धि आने/ लाने से सम्यक्-प्रकृति का उदय करके
मिथ्यात्व
अनित्य को नित्य मानना भी मिथ्यात्व है। क्योंकि तुमने सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को तो माना पर उनकी नहीं मानी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिभाषा और दोष
सम्यग्दर्शन आदि की परिभाषा 3 दोषों से रहित होनी चाहिये। दोष…. 1. अव्याप्ति : जो हमेशा/ हर परिस्थिति/क्षेत्र में न रहे जैसे गाय जो दूध
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