Category: अगला-कदम

बुद्धि/अबुद्धि पूर्वक

अबुद्धि पूर्वक अप्रमत्त क्रियायें हो सकती हैं पर प्रमत्त, बुद्धि पूर्वक ही । सम्यग्दर्शन जाग्रत अवस्था में ही, बुद्धि पूर्वक ही । मोक्षमार्ग पर चलना

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नो-कर्म / शरीर-नामकर्म

नो-कर्म, 8 कर्मों में शामिल नहीं । नो-कर्म, कर्म नहीं, कर्म की तरह रागद्वेष में कारण है जैसे प्रिय/अप्रिय शब्द । शरीर-नाम कर्म, 8 कर्मों

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शुभोपयोग

सम्यग्दृष्टि के शुभोपयोग या शुभोपयोग से सम्यग्दर्शन ? आगमानुसार सम्यग्दृष्टि को ही शुभोपयोग पर सम्यग्दर्शन होगा, शुभ-क्रियाओं से ही । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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आचरण

पंचम काल के “अंतिम-धर्मात्मा” तीन साल साढ़े आठ माह पहले (पंचमकाल के अंत से) समाप्त हो जायेंगे । उत्तर पुराण 558 प्रश्न  : अंतिम धर्मात्मा

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आकाश / द्रव्य

आकाश के एक-एक प्रदेश में अनंत द्रव्य (पुदगल) आ सकते हैं, पर एक प्रदेश में एक जीव नहीं रह सकता है क्योंकि प्रत्येक जीव असंख्यात

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वर्ग >> निषेक

वर्ग = परमाणु वर्गणा = समान जाति के वर्गों का समूह स्पर्धक = समान जाति की वर्गणाओं का समूह निषेक = भिन्न भिन्न जाति के

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कर्मबंध

कुछ कर्म 7वें गुणस्थान में ही बंधते हैं जैसे अहारक-द्विक (शरीर+अंगोपांग), इनका उदय 6 गुणस्थान में । इन कर्मों के बंध का कारण भी राग (संयम अवस्था

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उदीरणा

किसी भी कर्म के अनुभाग, प्रकृति, प्रदेश तथा स्थिति की उदीरणा साथ साथ होती है । मुनि श्री सुधासागर जी

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वेदनीय की स्थिति

असाता की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोडाकोडी सागर, साता की 15 । पर असाता के संक्रमण की अपेक्षा, साता की 30 कोडाकोडी सागर भी हो सकती

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केवलज्ञान

केवलज्ञान आत्मा की पर्याय नहीं है, ज्ञानगुण की पर्याय है । मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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