Category: अगला-कदम

भेद-विज्ञान

व्यवहार तथा निश्चय नय से जब हम पर-पदार्थ को जानेंगे तो एक भेद रेखा खिंच जायेगी, इसी का नाम “भेद-विज्ञान” है । मुनि श्री प्रणम्यसागर

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उपयोग

अशुभपयोग -> औदयिक भाव, शुभोपयोग -> क्षयोपशमिक, शुद्धोपयोग -> क्षयोपशमिक/औपशमिक/क्षायिक (श्रेणी चढ़ते समय) ।

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सम्मूर्च्छन

ढ़ंके भागों में सम्मूर्च्छन से ज्यादा उत्पत्ति होती है, इसीलिये स्त्रियों में सम्मूर्च्छन से ज्यादा उत्पत्ति होती है । मुनि श्री सुधासागर जी

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अपकर्षण

अपकर्षण में …. पाप प्रकृतियों की स्थिति अनुभाग दोनों कम होते हैं, पुण्य की स्थिति तो कम होती है पर अनुभाग बढ़ जाता है ।

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मरणांतक समुद्धघात

मरणांतक समुद्धघात चारों गतियों के जीवों को हो सकता है, सर्वार्थसिद्धि तक के जीवों को होता है । ये जीव पहले ही आयुबंध किये होते

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आत्मा से कर्मबंध

आत्मा से 8 प्रकार के कर्म तो हर समय बंधे रहते हैं, पर नोकर्म/भाषा/मनोवर्गणायें कभी बंधी रहती हैं कभी नहीं, जैसे विग्रहगति, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, असंज्ञी

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निगोद के कारण

इतर-निगोद जाने का कारण तो तीव्र पाप है, पर नित्य-निगोद में जीव स्वभाववश रहता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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