Category: अगला-कदम

आत्मा से कर्मबंध

आत्मा से 8 प्रकार के कर्म तो हर समय बंधे रहते हैं, पर नोकर्म/भाषा/मनोवर्गणायें कभी बंधी रहती हैं कभी नहीं, जैसे विग्रहगति, एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, असंज्ञी

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निगोद के कारण

इतर-निगोद जाने का कारण तो तीव्र पाप है, पर नित्य-निगोद में जीव स्वभाववश रहता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म / चारित्र

चारित्र = कर्म बंध की क्रियाओं को छोड़ना (श्रावकों को अशुभ, श्रवणों को शुभ भी ), धर्म = जो जीव को इष्ट स्थान में धरता

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शुभ/अशुभ लेश्या

अशुभ लेश्या वाले बुद्धिप्रधान, पड़ी चीजें उठाने का मन । शुभ लेश्या वाले ज्ञान/धर्म/विवेक प्रधान, पड़ी चीजें लौटाने का मन । शुभ लेश्या पुरुषार्थ से

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वेद

वेद को (नो) कषाय में क्यों लिया गया ? वेद से कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं । द्रव्य वेद से भी

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सम्यक्ज्ञान

इसके भी 8 अंग होते हैं, (शब्दाचार, अर्थाचार, तदुभयाचार, कालाचार, विनयाचार, उपधानाचार – बार बार स्मरण करना, बहुमानाचार, अनिन्हवाचार) । यदि उनका पालन ना किया

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धार्मिक क्रियायें

मिथ्यादृष्टि को पुण्य-बंध, संसार बढ़ाने में निमित्त, सम्यग्दृष्टि के संवर/निर्जरा/सम्यक् वर्धनी ।

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शुद्धोपयोग

शुद्धोपयोग के गुणस्थानों के बारे में 4 मत हैं – 1) 7 से 2) 8 से 3) 11 में 4) 12 में । मुनि श्री

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नय

उमास्वामी आचार्यादि ने शास्त्र नय से नहीं, नयों की अपेक्षा लिखे हैं । व्यवहार नय भोजन बनाना, निश्चय उसे खाना । दोनों नयों का उपदेश

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मंगल आशीष

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