Category: अगला-कदम

प्रमत्त / अप्रमत्त

आहारादि प्रवृत्ति प्रमत्त अवस्था, प्रवृति में सावधानी अप्रमत्त अवस्था । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रतिमा और गुणस्थान

5वाँ गुणस्थान पहली या दूसरी प्रतिमा वालों के ? मुनि श्री उत्तमसागर जी 12 शीलव्रतधारी के ही संयम माना जायेगा । पहली प्रतिमा में पाप

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संज्ञी

यदि कोई जीव संज्ञी बनने जा रहा है तो विग्रह-गति तथा अपर्याप्तक अवस्था में कहलायेगा तो संज्ञी पर बनेगा तब जब पर्याप्तक हो जायेगा। पं.

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बंध

कर्म-बंध के समय अलग अलग कर्म प्रकृतियों की स्थिति और अनुभाग अलग अलग बंधेगा । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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अनुबंध

पापानुबंधी/पुण्यानुबंधी का निर्णय कर्मबंध के समय ही तय हो जाता है – कि उदय के समय यह पाप का अनुबंध करेगा या पुण्य का ।

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तप

अविरत सम्यग्दृष्टि का तप भी महान उपकारी नहीं होता है । क्योंकि वह मोक्ष नहीं दिला सकता है । मिथ्यादृष्टि कुतप से 12 वें स्वर्ग

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सिद्धों के भोगादि

भोग/उपभोग नोकर्माश्रित/शरीराश्रित होते हैं । सिद्धों में भोगादि शक्ति रूप ही होते हैं । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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बंध / सत्व / उदय

उदय में सत्व है भी और नहीं भी । बंध और उदय एक साथ नहीं होते । उदय पूर्वक ही क्षय होता है जैसे मतिपूर्वक

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अकाल मरण

6 गुणस्थान के ऊपर आयुकर्म की उदीरणा नहीं होती । मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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