Category: अगला-कदम
मनुष्य में परघात
अंग भी परघात है । जैसे हाथ/पैरों की रचना । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
वर्गणाऐं
वर्गणाऐं एक सी होती हैं पर पाप/पुण्य से उनमें विशेषता आ जाती है । जैसे काले शरीर में नोकर्म वर्गणाऐं काली बनकर आयेंगी, गोरे के
सिद्धों की संख्या
आकाश से सिद्ध बनने वालों से धरातल के नीचे से संख्यात गुणे तथा उनसे भी संख्यात गुणे धरातल से । श्री हरिवंश पुराण (आकाश से
मिथ्यात्व के टुकड़े
सम्यग्दर्शन होने के बाद या पहले, मिथ्यात्व के टुकड़े होते हैं ? 2 मत हैं -एक के अनुसार पहले तथा दूसरे के अनुसार सम्यग्दर्शन होने
सिद्ध भगवान में दानादि
सिद्ध भगवान में दानादि (भोग, उपयोग) कैसे घटित करें ? ये दानादि, नाम कर्म के उदय से प्रकट/घटित होते हैं । सिद्ध भगवान में आज्ञा-विचय
आबाधा
दो प्रकार – 1. उदय की अपेक्षा – आयुकर्म को छोड़कर बाकी 7 कर्मों की 1 कोड़ा कोड़ी सागर पर 100 बर्ष । 2. उदीरणा
विपुलमति ज्ञान
विपुल यानि बड़ा । श्रेणी चढ़ने पर नीचे नहीं आते, 6, 7 गुणस्थान में ऊपर नीचे हो सकते हैं पर 6, 7 में दुबारा आने
मोहनीय की शक्ति
धर्म-ध्यान से मोहनीय कर्म का क्षय दसवें गुणस्थान तक हो जाता है तो ज्ञानावरण आदि कर्मों का क्षय क्यों नहीं होता है ? आचार्य श्री
अजीवादि का ज्ञान
जीव, संवरादि का ज्ञान करना तो सही है पर अजीव, आश्रवादि का क्यों ? आचार्य शांतिसागर जी – संवरादि तो रत्न हैं जो आश्रवादि रेत
सामान्य केवली
इनकी शुभ वर्गणाओं का अनुभाग उत्कृष्ट/तीर्थंकरों जैसा ही होता है । क्षपक श्रेणी चढ़ते समय सबका अनुभाग उत्कृष्ट हो जाता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा
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