Category: अगला-कदम

कर्म उदय

सविपाक निर्जरा में आबाधा के बाद, पहले निषेक में बहुत कर्म परमाणु खिरते हैं, फिर कम होते जाते हैं । अविपाक में एक साथ बहुत

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उपशम भाव

चौथे गुणस्थान में उपशम सम्यग्दर्शन होने पर सम्यक्त्व के क्षेत्र में औपशमिक भाव होते हैं, पर आठवें गुणस्थान से औपशमिक चारित्र आने पर औपशमिक भाव

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ज्ञान

मति, श्रुत ज्ञान – रूपी हैं, पर विषय रूपी अरूपी, अवधि, मन:पर्यय – अरूपी हैं, पर विषय रूपी ही, केवलज्ञान – अरूपी है, पर विषय

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चारित्र

चौथे गुणस्थान में सम्यक्त्वाचरण चारित्र, इस अपेक्षा से कहा क्योंकि उसमें दुराचरण नहीं है । वैसे चारित्र तो 5, 6 गुणस्थान से ही शुरू होता

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ऋद्धि

गणधरों को दीप्ति ऋद्धि तब काम आती है जब भगवान का निर्वाण हो जाता है । समवसरण में तो भूख साधारणजन को भी नहीं लगती

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दर्शनावरण/ज्ञानावरण

दर्शनावरण को द्वारपाल का तथा ज्ञानावरण को पर्दे का उदाहरण इसीलिये दिया गया है क्योंकि पहले द्वारपाल रोकता है (दर्शन भी पहले) फ़िर अंदर पहुँचने

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केवली के कर्म क्षय

63 प्रकृतियों का नाश करके केवलज्ञान (47 घातिया + 3 आयु + 13 नामकर्म) । प्रश्न : 3 आयु थीं, जिनका नाश किया ? नहीं,

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दर्शन/सम्यग्दर्शन

दर्शन – दर्शनावरण के क्षयोपशम से, सम्यग्दर्शन – दर्शन मोहनीय के क्षय/उपशम/क्षयोपशम से । दर्शन – सामान्य देखना, सम्यग्दर्शन – सच्चा देखना । पाठशाला

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जीवत्व

पारिणामिक भाव है । यहाँ जीवत्व को ज्ञान चेतना माना, अत: सिद्धों में 9 क्षायिक + 1 जीवत्व = 10 भाव माने हैं । पर

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पुदगल के गुण

चार गुणों में “वर्ण” क्यों कहा, आकार क्यों नहीं ? आकार तो सब द्रव्यों में कहा जा सकता है, पर वर्ण पुदगल में ही होता

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मंगल आशीष

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