Category: अगला-कदम

विस्रसोपचय

वर्गणाऐं जो कर्मरूप परिवर्तित होने को तैयार खड़ीं हैं, आत्मा में प्रवेश करने को तैयार खड़ीं हैं । जैसे मच्छरदानी में घुसने को मच्छर तैयार

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अवधिज्ञान

सर्वार्थसिद्धि से आने वाले जीव अवधिज्ञान लेकर आते है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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समयप्रबद्ध

एक समय में बाँधी/उदय में आयी कर्मवर्गणाऐं । ये कम ज़्यादा हो सकती हैं । पाठशाला

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अवधि दर्शन

कथन में अवधिदर्शन 4 गुणस्थान से 7 गुणस्थान तक कहा है । पर यह 1 से 3 गुणस्थान में भी होता है वरना कुअवधिज्ञानी के

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ज्ञान चेतना

11, 12 गुणस्थान में मोह/कषाय नहीं है, तब भी ज्ञान चेतना नहीं, क्योंकि ज्ञानावरण हटा नहीं । 13, 14 गुणस्थान में ज्ञान पूरा पर चेतना

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कषाय

11, 12, 13 गुणस्थान में कषाय नहीं है, भूतपूर्व नय की अपेक्षा से लेश्या कही गयी है । इनमें योग है और यह योग पहले

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63 कर्मों का नाश

63 कर्मों का नाश करके केवलज्ञान होता है । इनमें तीन आयुबंध भी है, पर मनुष्य के अलावा बाकी 3 आयुबंध का नाश इस अपेक्षा से

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ज्ञान

मति आदि 4 ज्ञान शक्तियाँ आत्मा में स्वाभाविक नहीं हैं । कर्म सापेक्ष होती हैं । तत्वार्थ सूत्र टीका

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आयुबंध

अपकर्ष काल में, लेश्या के 26 भागों में से यदि बीच के 8 भाग में वह जीव हो, तभी आयुबंध होगी । (कर्मकांड़ के अनुसार, धवला जी में

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मंगल आशीष

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