Category: अगला-कदम
ज्योतिष देवों का शरीर
आचार्य श्री – इनके शरीर का वर्ण चमकदार होता है, पर उद्योत आदि नामकर्म वाला नहीं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
द्रव्येंद्रिय
निर्वृत्ति – रचना/बनावट आभ्यंतर – आत्मप्रदेश बाह्य – इंद्रियों का आकार/रचना उपकरण – निर्वृत्ति का उपकार करने वाली आभ्यंतर – जैसे नेत्रों का सफेद मंड़ल बाह्य
सूक्ष्म
प्रत्येक वनस्पति के सूक्ष्म (शरीर) नाम कर्म नहीं होता । करूणानुयोग दीपक – P 31
ज्ञान
मति, श्रुत, अवधिज्ञान – मिथ्या व सम्यक् होते हैं । (तत्वार्थसूत्र 1/31) आचार्य श्री – “च” से यहाँ मिश्र ज्ञान भी लेना चाहिये । पाठशाला
द्वीप/समुद्रों के संरक्षक
हर द्वीप और समुद्रों के दो-दो संरक्षक होते हैं । एक उत्तर का, दूसरा दक्षिण का । जैसे नंदीश्वर द्वीप के एक देव का नाम
क्षायिक सम्यग्दर्शन
केवली का पादमूल तथा व्रजवृषभनाराच संहनन जरूरी होता है । पाठशाला
द्रव्य/भाव
भाव में वर्तमान की प्रधानता होती है, द्रव्य में वर्तमान की प्रधानता नहीं होती है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
भाव
मुक्त जीवों के दो भाव (क्षायिक, पारिणामिक) तथा संसारिओं के 3, 4, तथा 5 भाव होते हैं ।
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